आस्था सक्सेना
लद्दाख हमारे भारत का अभिन्न अंग है। यहां की जनता ने सदैव अपने देश से प्रेम किया है, भारत सरकार की सभी उचित नीतियों तथा निर्णयों को सहर्ष स्वीकृति व समर्थन दिया है, चीन तथा पाकिस्तान से होने वाले सभी युद्धों में भारतीय सेना को सहयोग देकर और उसका मनोबल ऊंचा कर अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय दिया है।
लद्दाखवासी आज लोकतंत्रिक व्यवस्था में जनभागीदारी की चाहत रखते हैं और इसके लिए वे सोनम वांगचुक के नेतृत्व में भारत सरकार से गुहार लगा रहे हैं। वे चाह रहे हैं कि लद्दाख के पर्यावरण तथा सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण हेतु उसको संविधान की छठी अनुसूची में रखा जाए तथा लद्दाख में लोकतांत्रिक व्यवस्था में उचित जनभागीदारी हेतु उसको जम्मू कश्मीर की भांति ही विधानसभा दी जाए। इस संबंध में कई बार विचार – विमर्श के बाद भी कोई फैसला नहीं हो पाया है।
कारगिल भी यहीं, लेह भी यहीं
लद्दाख सुदूर उत्तर का पर्वतीय क्षेत्र है जो 2019 से पूर्व जम्मू कश्मीर राज्य का अंग था। एक ओर पाकिस्तान तथा दूसरी ओर चीन से सटी सीमा होने के कारण यह क्षेत्र सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। कारगिल तथा लेह यहीं स्थित हैं।
लद्दाखवासी आश्वस्त
लद्दाखवासी मानते हैं कि पहले जम्मू कश्मीर राज्य की राजधानी श्रीनगर होने के कारण इस क्षेत्र पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया। 5 अगस्त को 2019 को अनुच्छेद 370 तथा 35ए की समाप्ति के पश्चात लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। यहां के निवासियों ने इसे भरपूर सराहा। उन्हें विश्वास है कि अब उनके दिन संवरेंगे और उनके इलाके को भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में समुचित भागीदारी मिलेगी।
लद्दाख की जनता को यह उम्मीद है कि पर्वतीय तथा जनजातीय बहुल क्षेत्र होने के कारण लद्दाख को भी देश के कुछ अन्य राज्यों जैसे असम, मिज़ोरम, मेघालय, त्रिपुरा की तरह संविधान की छठवीं अनुसूची के तहत जनजातीय क्षेत्र घोषित किया जाएगा।
ज्ञात हो कि जम्मू कश्मीर राज्य की अपनी विधानसभा है जहां इसी वर्ष चुनाव होंगे, लेकिन लद्दाख का एकमात्र सांसद है, राज्यसभा में यहां का कोई प्रतिनिधि नहीं है। लद्दाखवासी चाहते हैं कि यहां का शासन अन्य राज्यों की तरह पूर्णत: नौकरशाहों के हाथों में न हो। वे चाहते हैं कि ऐसे लोगों की भागीदारी शासन में हो जिनको यहां की संस्कृति, पारिस्थितिकी व भूगोल का पूर्ण ज्ञान व संज्ञान हो। जनता के पास अपनी समस्याएं उठाने तथा उनका समाधान पाने का कोई सुगम स्रोत हो।
पर्यावरण पर ध्यान देना जरूरी
लद्दाख का पर्यावरण अतिसंवेदनशील है तथा यहां की अनेक जनजातियों की सभ्यता तथा संस्कृति को बचाए रखने के लिए उनका संरक्षण अनिवार्य है।
छठवीं अनुसूची में न होने के कारण पर्यावरण के अनुचित दोहन तथा यहां की विविध सांस्कृतिक विरासत के लुप्त हो जाने का खतरा व्यक्त किया जा रहा है। लद्दाख का पर्यावरण यदि नष्ट होता है, तो उसका कुप्रभाव संपूर्ण उत्तर भारत की जलवायु पर पड़ेगा।
कहां है पेंच
सरकार का पक्ष यह है कि मात्र 3 लाख की जनसंख्या पर विधानसभा नहीं दी जा सकती। वहीं क्योंकि लद्दाख की संपूर्ण जनसंख्या जनजातीय नहीं है, इसलिए पूरे प्रदेश को छठी अनुसूची में नहीं डाला जा सकता।
जनभावना को समझेगी सरकार : सोनम वांगचुक
लद्दाख के लोगों की शासन में जन भागीदारी की चाहत को किस तरह से पूरा किया जा सकता है; यह एक विचारणीय प्रश्न है। सोनम वांगचुक जाने माने वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, पर्यावरणविद् और समाजसेवी हैं। लद्दाख के लोगों का मानना है कि उनकी मांगें तर्कसंगत हैं। वांगचुक कहते हैं कि उन्हें पूर्ण आशा है कि यह सरकार अपने सभी वादों की तरह यह वादा भी निभाएगी और जन भावना का सम्मान करते हुए उनकी मांगों को अवश्य पूरा करेगी।