संदीप सक्सेना
नई दिल्ली। जापान में पिछले साल से जारी मंदी के कारण वहां की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। एक समय जापान दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कगार पर था लेकिन अब इसके हाथों से दुनिया की तीसरी सबसे बड़े अर्थव्यवस्था का खिताब छिन गया है।
जापान ने 2010 में चीन की अर्थव्यवस्था को पछाड़ दिया था। इन वर्षों में जापान दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की कगार पर था, सारे अनुमान इसी ओर इशारा कर रहे थे लेकिन पिछले वर्ष से जारी मंदी ने देश की आर्थिक रफ्तार पर बड़ा ब्रेक लगा दिया है। जापान को पछाड़ कर जर्मनी अब तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन गई है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के आगे बढ़ने का रास्ता और भी साफ हो गया है। जापान की विकास दर सुस्त पड़ने से जीडीपी के आकार में भी गिरावट दर्ज की जा रही है। मौजूदा हालात को देखते हुए अब साफ हो गया है कि भारत जल्द ही तीसरी पायदान पर पहुंच जाएगा।
विशेषज्ञों की मानें तो जापान की अर्थव्यवस्था पर वहां की करेंसी में कमजोरी और उम्रदराज आबादी का असर देखने को मिल रहा है। चौथी तिमाही में जापान की सालाना ग्रोथ 1.2 प्रतिशत रही और कैलेंडर ईयर 2023 के आंकड़ों में जर्मनी से कम रही। ये आंकड़े पिछले सप्ताह ही रिलीज किए गए थे। दूसरी तरफ यह भारत के लिए अच्छी खबर है कि अगले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था जर्मनी और जापान से आगे निकल जाएगी।
क्या है भारत के बढ़ने की वजह
भारत अपने युवाओं की ताकत के कारण तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है। एक तरफ जर्मनी और जापान जैसे देशों में कामकाजी उम्र की आबादी में तेजी से गिरावट देखी जा रही है, वहीं भारत में कार्यबल की संख्या बढ़ रही है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार 2022 तक जापान की कामकाजी उम्र की आबादी लगभग 58 प्रतिशत रही, जबकि जर्मनी की लगभग 63 प्रतिशत थी, जो लगातार घट रही थी। इसके विपरीत, भारत की कामकाजी उम्र की आबादी लगभग 67 प्रतिशत तक पहुंच गई है और यह लगातार बढ़ रही है।
भारत कब निकलेगा आगे
भारत की तुलना में, जापान और जर्मनी दोनों ही पहले की तुलना में काफी धीमी ग्रोथ दिखा रहे हैं। आईएमएफ के आंकड़े भी स्पष्ट रूप से इस बात को दर्शाते हैं कि भारत की वृद्धि इन दोनों देशों की तुलना में काफी अधिक है। इसलिए साल 2026 तक हमें जर्मनी को पार करके तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है। उस समय, भारत की जीडीपी 5.5 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है।