ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिला अधिकारियों को कर्नल के रूप में सूचीबद्ध करने से इनकार करने का सेना का रवैया मनमाना है। इसके साथ ही कोर्ट ने अधिकारियों को उनके प्रमोशन के लिए 15 दिन के अंदर विशेष चयन बोर्ड को फिर से बुलाने का निर्देश दिया।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने महिला अधिकारियों के उचित अधिकारों को खत्म करने का रास्ता खोजने के लिए सेना के रवैये की निंदा की। पीठ ने कहा, इस तरह का नजरिया उन महिला अधिकारियों को न्याय देने की जरूरत पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिन्होंने उचित अधिकार प्राप्त करने के लिए लंबी और कठिन लड़ाई लड़ी है। पीठ में शामिल जस्टिस न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा ने कहा, कर्नल के रूप में पैनल में शामिल होने के लिए महिला अधिकारियों के सीआर की गणना के लिए जिस तरह से कट-ऑफ लागू किया गया है वह मनमाना है, क्योंकि यह सेना के नीति परिपत्र और इस कोर्ट के फैसले के विपरीत है।
शीर्ष कोर्ट ने कहा कि निर्धारित नीतिगत ढांचा यह स्पष्ट करता है कि नौ साल की सेवा के बाद सभी गोपनीय रिपोर्ट (सीआर) पर विचार किया जाना जरूरी है। इसमें कहा गया है कि वर्तमान मामले में महिला अधिकारियों को उनके पुरुष समकक्षों के बराबर करने के लिए मनमाने ढंग से कट-ऑफ लागू किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि अधिकारियों को समायोजित करने के लिए रिक्तियों की संख्या अपर्याप्त है।
‘नौ साल की सेवा के बाद सीआर पर विचार करना जरूरी’
कोर्ट ने 2021 के फैसले का दिया हवाला
कोर्ट ने कहा, इस संबंध में, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कोर्ट ने अपने 21 नवंबर, 2022 के आदेश में सेना अधिकारियों के बयान को दर्ज किया था कि हमारे फैसले के अनुसार 150 रिक्तियां उपलब्ध कराई जानी थीं। 108 रिक्तियां भरी गई हैं, इसलिए रिक्तियों की अनुपलब्धता का आधार उपलब्ध नहीं होगा। पीठ ने अपने आदेश में कहा, “हम आदेश देते हैं और निर्देश देते हैं कि विशेष चयन बोर्ड 3बी (कर्नल के रूप में पदोन्नति के लिए) को इस फैसले के 15 दिन भीतर फिर से गठित करने की प्रक्रिया शुरू की जाए।
पिछले दो सीआर को छोड़कर सभी गोपनीय रिपोर्ट ध्यान में रखा जाएगा। विवाद को कम करने के लिए, अटॉर्नी जनरल का कहना है कि जून 2021 की कट ऑफ पर विचार किया जाना चाहिए।”
कोर्ट ने महिला अधिकारियों की याचिका पर सुनवाई की
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट भारतीय सेना की उन महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिन्हें स्थायी कमीशन दिया गया है। यह विवाद चयन द्वारा कर्नल के पद पर प्रमोशन के लिए उनके पैनल में शामिल नहीं होने से संबंधित है।
शीर्ष कोर्ट ने 2021 में कहा था कि महिला शॉर्ट सर्विस कमीशन की अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए सेना द्वारा निर्धारित मूल्यांकन मानदंड सिस्टेमैटिक भेदभाव करते हैं, जिससे आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान हुआ है और उनकी गरिमा को ठेस पहुंची है।