ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। वाराणसी के रामनगर थाने में 1982 में दर्ज मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने माना कि साझा इरादा (आईपीसी की धारा 34) मनोवैज्ञानिक तथ्य है। यह अपराध होने से एक मिनट पहले या उसके घटित होने के दौरान भी बनाया जा सकता है।
इस टिप्पणी के साथ जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें यह मुद्दा उठाया गया था कि क्या अपीलकर्ता रामनरेश का अन्य सहअभियुक्तों के साथ हत्या का साझा इरादा था।
हत्या करने का साझा इरादा दिखता था : अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 34 लागू करके हत्या का सहदोषी ठहराया गया था। उसके कृत्यों से हत्या करने का साझा इरादा दिखता था।
वाराणसी के रामनगर थाने में 1982 में हुई वारदात में बलराम और उसका भाई रामकिशोर एक ढाबे की ओर जा रहे थे। तभी उनका सामना लाठियों और रॉड से लैस चार लोगों से हुआ। अपीलकर्ता और तीन सहआरोपियों ने रामकिशोर पर हमला किया, जिससे उसे घातक चोटें आईं। बाद में उसकी मौत हो गई। ट्रायल कोर्ट ने रामनरेश को आईपीसी की धारा 34 के साथ धारा 302 (हत्या) का दोषी ठहराया। हाईकोर्ट ने भी सजा की पुष्टि की।