डॉ. सीमा द्विवेदी
नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) के अध्यक्ष अलवारो लारियो ने कहा है कि भारत की जी20 अध्यक्षता में वैश्विक खाद्य प्रणालियों को बदलने की क्षमता है क्योंकि कुछ क्षेत्र जिन पर नई दिल्ली का ध्यान केंद्रित है, संयुक्त राष्ट्र निकाय की प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं।
कृषि विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र कोष ने बाजरे पर फिर से ध्यान केंद्रित करने और यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर पिछले साल भोजन की भारी कमी का सामना करने वाले 18 देशों को 18 लाख टन गेहूं का निर्यात करने के लिए भारत की सराहना की।
प्रसिद्ध विकास वित्त विशेषज्ञ लारियो ने एक समाचार एजेंसी से साक्षात्कार में कहा कि भारतीय विशेषज्ञता वैश्विक दक्षिण में अन्य देशों के कृषि और ग्रामीण विकास का समर्थन कर सकती है। लारियो जी20 कृषि मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए थे।
आईएफएडी संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो कई गरीब और कमजोर देशों में गरीबी, भुखमरी और खाद्य असुरक्षा से लड़ने में मदद करने के लिए परियोजनाओं के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित कर रही है। लारियो ने कहा, भारत ने दक्षिण-दक्षिण सहयोग में विचारशील नेतृत्व दिखाया है। मैं इसकी बहुत सराहना करता हूं। इनमें से एक उदाहरण बाजरे के पुनरुद्धार पर भारत का फिर से ध्यान केंद्रित करना है।
बाजरा महत्वपूर्ण फसल
उन्होंने कहा, हमने देखा है कि जलवायु परिवर्तन के अनुकूल किसानों के लिए बाजरा एक महत्वपूर्ण फसल है। यह देखते हुए कि किसान सूखे की समस्या से जूझ रहे हैं और दुनिया के कुछ सबसे गरीब और सबसे दूरस्थ भागों में पोषण सुनिश्चित करने के लिए बाजरा एक अच्छा विकल्प है।
उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विविध कारणों से कृषि परिदृश्य पूरी तरह से बदल गया है। कोविड-19 महामारी, यूक्रेन युद्ध और जलवायु परिवर्तन ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित किया है जिससे अफ्रीकी देशों में खाद्य संकट पैदा हो गया है।
आईएफएडी अध्यक्ष ने यह भी कहा कि छोटे स्तर के किसान निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उपभोग किए जाने वाले भोजन का 70 प्रतिशत तक उत्पादन करते हैं और वे अक्सर जलवायु परिवर्तन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खामियाजा भुगतते हैं। हमें उत्सर्जन को कम करने और अर्थव्यवस्थाओं को परिवर्तन के अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए जलवायु वित्त की आवश्यकता है।
गति पर्याप्त नहीं
कार्रवाई की वर्तमान गति पेरिस समझौते के तहत वैश्विक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा कि 2017 और 2018 के बीच छोटे स्तर के उत्पादकों को केवल 10 अरब अमरीकी डॉलर या जलवायु वित्त का मात्र 1.7 प्रतिशत प्राप्त हुआ।