ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। जो बच्चे जन्मजात मुड़े पैर (क्लबफुट) वाले होते हैं, उन्हें ठीक करने के लिए उनके माता-पिता एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं, फिर भी उन्हें निराशा हाथ लगती है। घाटकोपर में बीएमसी के राजावाड़ी अस्पताल के डॉक्टर बेहतरीन इलाज के माध्यम से ऐसे बच्चों को ठीक करने में सफल हो रहे हैं।
इस अस्पताल से क्लबफुट वाले बच्चे ठीक होकर निकल रहे हैं। पिछले 19 महीने में अस्पताल के डॉक्टर ने क्लबफुट से जूझ रहे 84 मासूम बच्चों के पैरों को पूरी तरह से ठीक किया है। क्लबफुट में पैरों की कई असामान्यताएं शामिल हैं, जो आमतौर पर जन्म के समय पाईं जाती हैं। इसमें बच्चे के एक या दोनों पैर का आकार अंदर की ओर मुड़ा हुआ होता है।
क्लबफुट में मांसपेशियों को हड्डी (टेंडन) से जोड़ने वाले ऊतक सामान्य से छोटे होते हैं। जागरूकता की कमी के कारण कई बार अभिभावकों को पता ही नहीं चलता और फिर बच्चे जब थोड़े बड़े हो जाते हैं, तो फिर उन्हें चलने में दिक्क त होती है। इस विकृति से जूझ रहे बच्चों को इलाज मिले, इसी के मद्देनजर सितंबर 2022 में राजावाड़ी अस्पताल में क्लब फुट ओपीडी की शुरुआत की गई।
विशेष ओपीडी
राजावाड़ी अस्पताल की अधीक्षक डॉ. भारती राजूवाला ने बताया कि अस्पताल में क्लबफुट के लिए विशेष ओपीडी चलाई जाती है। गरीब अभिभावकों पर आर्थिक बोझ नहीं आए, इसलिए हमारे यहां सभी बच्चों का मुफ्त में इलाज किया जाता है। कंसल्टेंट पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. चिंतन दोशी बच्चों का उपचार करते हैं।
18 महीनों में आए 1 हजार बच्चे
डॉ. चिंतन दोषी ने बताया कि पिछले 18 महीनों में ओपीडी में 1,000 अभिभावक अपने बच्चों को लेकर आए हैं। इनमें से 150 बच्चे ऐसे थे, जिन्हें क्लबफुट की समस्या थी, लेकिन फिजियोथेरेपी की मदद से ही उनके पांव ठीक हो गए। इसके लिए बच्चे की मां को ही प्रशिक्षण दिया गया। जब बच्चे छोटे रहते हैं और विकृति उतनी गंभीर नहीं होती, तब केवल फिजियो से भी पांव को ठीक किया जा सकता है।
88 बच्चों को लगे प्लास्टर और ब्रेस
डॉ. दोषी ने बताया कि 88 बच्चे ऐसे थे, जिनकी एड़ी फिजियो से ठीक नहीं हो सकती थी। इन बच्चों का हर सप्ताह प्लास्टर किया जाता है। 4 से 5 सप्ताह प्लास्टर करने के बाद टीनाटामी प्रक्रिया की जाती है। इसमें बच्चे के एड़ी पिछले हिस्से की सख्त मसल को लूज किया जाता है, ताकि पैर अपनी सामान्य पोजीशन पर आ सके। इसके बाद 3 महीने तक फिर से बच्चे के प्रभावित पैर में प्लास्टर किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद अभिभावकों को विशेष प्रकार के जूते (ब्रेस) दिए जाते हैं। ये जूते 6 महीने लगातार 22 घंटे तक पहनने होते हैं। जब तक बच्चा 4 साल का नहीं होता, तब तक उसे सोते वक्त जूते पहनने के लिए कहा जाता है।
– 84 मासूम बच्चों के पैरों को पूरी तरह से ठीक किया गया
इलाज में देरी की वजह
डर और इलाज के बारे में अज्ञानता होने से बच्चे के इलाज में बाधा आती है। कुछ परिवारों में ऐसा माना जाता है कि श्राप, ग्रहण, माता-पिता द्वारा कुत्ते पर पैर रखने जैसे अंधविश्वासों के कारण बच्चे का जन्म विकलांग के रूप में होता है। यह भी अंधविश्वास है कि अपने पैर से नींबू को पार करने के कारण बच्चे ऐसे पैरों के साथ पैदा होते हैं। इन सब अंधविश्वासों के कारण समय पर उचित इलाज नहीं मिल पाता है लेकिन यह ओपीडी इस गलतफहमी को दूर करने और यह समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है कि बच्चे के पैर क्यों मुड़े हुए हैं और इसके ठीक करने के उपाय क्या हैं।
क्यों होता है क्लबफुट
क्लबफुट तब होता है जब जन्म के समय बच्चे के पैर मुड़े हुए होते हैं। यह कई बार एक ही पोजिशन में पैर होने के कारण भी होता है। यह गर्भावस्था में सोनोग्राफी में भी नहीं दिखता है। हालांकि, क्लबफुट की पहचान बच्चे के जन्म होते ही की जा सकती है। डॉ. दोषी ने बताया कि हमारे अस्पताल में यदि कोई बच्चा उक्त विकृति के साथ जन्म लेता है, तो डॉक्टर हमें तुरंत बुलाते हैं।
जल्द इलाज जरूरी
डॉ. दोषी ने बताया कि क्लबफुट की पहचान और इलाज जितनी जल्दी हो उतना अच्छा परिणाम मिलता है। बच्चा बड़ा हो जाता है, तो फिर सर्जरी के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। सर्जरी तक बात नहीं पहुंचे, इसलिए अभिभावकों को जरा भी संदेह है, तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
यहां से भी आते हैं इलाज कराने नासिक, पुणे, अहमदनगर, ठाणे, रायगड, कसारा।