ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में टिप्पणी की है कि जिस कैदी में सुधार हो चुका है, उसे जेल में रखने से क्या हासिल होने वाला है। शीर्ष अदालत ने कहा कि सजा में छूट देकर समय से पहले कैदियों को रिहा नहीं करना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। इससे कैदियों में निराशा की भावना भी पैदा होती है।
26 साल से जेल में बंद कैदी को लेकर आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने करीब 26 साल से जेल में बंद कैदी को रिहा करने के लिए केरल सरकार को आदेश देते हुए यह टिप्पणी की। यह फैसला 1998 में डकैती और एक महिला की हत्या के जुर्म में केरल के जेल में बंद 65 साल के जोसेफ की याचिका का निपटारा करते हुए दिया गया।
जस्टिस एस. रविंद्र भट और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि सजा में छूट देकर समय से पहले रिहा किए जाने से इनकार करना ‘संविधान के समानता का अधिकार’ और ‘जीवन का अधिकार’ के तहत संरक्षित मौलिक अधिकारों का हनन है।