ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीएफ के उस नियम को बरकरार रखा है जिसमें ये प्रावधान है कि मामूली सजा के तौर पर कंपल्सरी रिटायरमेंट दी जा सकती है। केंद्र सरकार को यह लिबर्टी है। सुप्रीम कोर्ट ने सीआरपीएफ एक्ट 1949 का हवाला देकर कहा कि कंट्रोल शब्द के मायने यहां अनुशासनात्मक कंट्रोल है।
यह एक्ट केंद्र सरकार के अपनी फोर्स पर कंट्रोल की बात करता है और उसके तहत अनुशासनात्मक कंट्रोल आता है। केंद्र सरकार को इस बात की छूट है कि वह सजा के तौर पर कंपल्सरी रिटायरमेंट दे सकती है। एक्ट की धारा-11 में तमाम सजा का प्रावधान किया गया है।
मौजूदा मामले में सीआरपीएफ के एक जवान को सजा के तौर पर कंपल्सरी रिटायरमेंट दी गई थी। उस पर आरोप था कि उसने अपने साथी के साथ मारपीट की है। इस शख्स ने डिपार्टमेंटल अपील दाखिल की। डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ने अर्जी खारिज कर दी। इसके बाद मामला उड़ीसा हाई कोर्ट के सामने आया जिसने पूर्व हेड कॉन्स्टेबल की अर्जी स्वीकार कर ली और कहा कि सीआरपीएफ एक्ट की धारा-11 (1) में कंपल्सरी रिटायरमेंट सजा के तौर पर परिभाषित नहीं है। इसके बाद केंद्र सरकार ने हेड कॉन्स्टेबल को प्रतिवादी बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।