ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गुजरात न्यायिक सेवा के प्रोन्नति से जुड़े मामले में दिए फैसले में भारत सहित विभिन्न देशों में सरकारी कर्मचारियों की प्रोन्नति के नियमों और तरीकों का जिक्र करते हुए कहा है कि भारत में कोई भी सरकारी कर्मचारी अधिकार के तौर पर प्रोन्नति का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि संविधान में प्रोन्नत पदों को भरने का कोई मानदंड तय नहीं किया गया है।
– संविधान में प्रोन्नत पदों को भरने का कोई मानदंड तय नहीं
कोर्ट ने माना है कि प्रोन्नति की नीति तय करना विधायिका और कार्यपालिका के कार्यक्षेत्र में आता है और न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश सीमित है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि विधायिका या कार्यपालिका रोजगार और कर्मचारी द्वारा किये जाने वाले अपेक्षित काम की प्रकृति के हिसाब से प्रोन्नत पदों की रिक्तियां भरने का तरीका तय कर सकती है। कोर्ट इस बात की समीक्षा नहीं कर सकता कि पदोन्नति के लिए अपनाई गई नीति सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों का चयन करने के लिए उपयुक्त है कि नहीं।
सीमित दखल देने का अधिकार
कोर्ट ने कहा कि वह सिर्फ तभी सीमित दखल दे सकता है, जब तक कि संविधान के अनुच्छेद 16 के तहत समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ हो। ये बात सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने रविकुमार धनसुख लाल मेहता बनाम गुजरात हाई कोर्ट मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन की एडीशनल डिस्टि्रक्ट जज पद पर प्रोन्नति के मामले में दिये फैसले में कही है।
हाई कोर्ट की सिफारिश को रखा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गुजरात हाई कोर्ट की 2023 की सिफारिश को बरकरार रखा है, जिसमें मेरिट कम सीनियरिटी के सिद्धांत के आधार पर एडीशनल डिस्टि्रक्ट जज की भर्ती में 65 प्रतिशत पदोन्नति कोटे में सिविल जज सीनियर डिवीजन की प्रोन्नति की सिफारिश की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने दो न्यायिक अधिकारियों की ओर से दाखिल की गई रिट याचिका खारिज कर दी है।
10 मार्च 2023 की चयन सूची को चुनौती दी थी
इस मामले में दो न्यायिक अधिकारियों ने रिट याचिका दाखिल कर गुजरात हाई कोर्ट की 10 मार्च 2023 की जारी चयन सूची को चुनौती दी थी, जिसमें गुजरात हाई कोर्ट ने सिविल जज सीनियर डिवीजन की डिस्टि्रक्ट जज कैडर पद पर 65 प्रतिशत प्रोन्नति कोटा में प्रोन्नति की सिफारिश की थी। याचिका में कहा गया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और गुजरात स्टेट ज्यूडिशियल सर्विस रूल्स 2005 के नियम पांच का उल्लंघन करता है।
क्या कहता है नियम
नियम पांच कहता है कि डिस्टि्रक्ट जज कैडर के 65 प्रतिशत पद सीनियर सिविल जज की प्रोन्नति से भरे जाएंगे और यह प्रोन्नति मेरिट कम सीनियरिटी के सिद्धांत और पद की उपयुक्तता के आधार पर होगी। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में गुजरात हाई कोर्ट को सुझाव दिया है कि वह पद की उपयुक्तता के टेस्ट के पहलू पर अपने नियमों में संशोधन कर सकता है और उसे उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा नियम 1975 के अनुसार विस्तृत बना सकता है।
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के समय से सरकारी नौकरी में भर्ती और प्रोन्नति के नियमों का जिक्र किया है, जिसमें प्रोन्नति वरिष्ठता आधारित होती थी, जबकि भारतीय संविधान में प्रोन्नति का अधिकार अनुपस्थित है। कोर्ट ने ब्रिटिश काल से लेकर अभी तक सरकारी नौकरियों में भर्ती और प्रोन्नति की अवधारणा और नियमों का जिक्र किया है। साथ ही मेरिट कम सीनियरिटी और सीनियरिटी कम मेरिट के सिद्धांत पर आधारित पूर्व फैसलों में दी गई व्यवस्था का भी हवाला दिया है।