ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया को मानवीय बताते हुए उच्चतम न्यायालय ने इसमें अत्यधिक देरी के मुद्दे को उठाया और कहा कि कई बच्चे बेहतर जीवन की उम्मीद में गोद लिये जाने का इंतजार कर रहे हैं।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि यह प्रक्रिया वस्तुतः रुक गई है। पीठ भारत में बच्चों को गोद लेने की कानूनी प्रक्रिया को सरल बनाने की मांग सहित दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल रहे।
पीठ ने कहा, ‘‘इसमें बहुत देरी हो रही है। इसे एक गंभीर मुद्दा बताते हुए पीठ ने कहा कि अगर 20-30 साल की उम्र के किसी जोड़े को बच्चा गोद लेने के लिए तीन या चार साल तक इंतजार करना पड़ता है, तो माता-पिता के रूप में उनकी स्थिति और गोद लिए जाने वाले बच्चे की स्थिति समय बीतने के साथ बदल सकती है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘वे (केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण-कारा) गोद लेने की प्रक्रिया को अवरुद्ध क्यों कर रहे हैं।’’
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि मामले में उनका हलफनामा तैयार है और वह इसे शीर्ष अदालत में दायर करेंगी। उन्होंने कहा, ‘‘हमने जो कवायद की है, उसे अदालत के समक्ष रखने की अनुमति दी जाए।’’ पीठ ने भाटी से कहा कि अदालत को पिछले तीन साल में गोद लिये गये बच्चों की संख्या और गोद लिये जाने के लिए इंतजार कर रहे बच्चों की संख्या बताएं।