ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। विदेश मंत्री एस जयशंकर कूटनीति की भाषा में देश की नीति को पिरोकर बिंदास बोलते हैं। विदेश सेवा के अधिकारी रहे जयशंकर का अनुभव उन्हें इसके लिए बहुत उपयुक्त बना देता है। आस्ट्रेलिया के पर्थ शहर में दो दिवसीय हिंद महासागरीय देशों के सातवें सम्मेलन में 40 देशों के प्रतिनिधि एकत्र हुए थे। इसमें विदेश मंत्री ने बिना नाम लिए चीन को खूब खरी-खरी सुनाई। उन्होंने 39 देशों को सस्ते कर्ज के जाल में न फंसने के लिए आगाह किया। उन्होंने समुद्री क्षेत्र में बढ़ रही चुनौतियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि नौवहन, उड़ानों की स्वतंत्रता, संप्रभुता और सुरक्षा की चिंताएं हैं।
चीन पर तंज
यह जयशंकर का भारत के पड़ोसी देश चीन पर सीधा हमला था। जयशंकर ने श्रीलंका के चीन के सस्ते या अपारदर्शी कर्ज के जाल में फंसने का जिक्र किए बिना हिंद महासागर के देशों को संदेश में ही सब कुछ कह दिया। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के असामान्य संबंधों पर उनके नश्तर जैसे चुभते तंज भी इसी ओर इशारा कर रहे थे।
जयशंकर ने अपने संबोधन में संप्रभुता की रक्षा को काफी अहम स्थान दिया। समुद्री कानूनों की अवहेलना के मामलों से निपटने और लंबे समय से चली आ रही संधियों के उल्लंघन जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए हिंद महासागरीय देशों के बीच में गहरे संबंध की वकालत की। जयशंकर के इस आह्वान को वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की कोशिश, दक्षिण सागर में चीन के दावे और जिबूती द्वीप पर उसके दबदबे से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
हिंद महासागरीय क्षेत्र में क्या हैं चुनौतियां?
विदेश मंत्री ने समुद्री लुटेरों, जल दस्युओं और आतंकवाद के बढ़ते खतरों का जिक्र करते हुए आगाह किया कि जब हिंद महासागर पर नजर डालते हैं, तो वहां दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियां पूरी तरह से स्पष्ट होती हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून की अनुपालन की चुनौती
विदेश मंत्री ने कहा कि एक तरफ संघर्ष, समुद्र क्षेत्र के खतरे, समुद्री लूट और आतंकवाद का खतरा दिखाई देता है। जबकि दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय कानून के समक्ष उनके अनुपालना की चुनौतियां हैं। स्वतंत्र नौवहन, समुद्री क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय हवाई क्षेत्र में उड़ानों की आजादी व सुरक्षा तथा संप्रभुता को लेकर चिंताए हैं। विदेश मंत्री लगातार अंतरराष्ट्रीय मंच से संप्रभुता, अंतरराष्ट्रीय संधियों की अनुपालना और अपारदर्शी कर्ज का मुद्दा उठा रहे हैं।
भारत का मानना है कि हिंद महासागरीय क्षेत्र में दखल या अंतरराष्ट्रीय संधि के उल्लंघन के किसी भी देश के प्रयास अस्वीकार्य हैं। इसके लिए आवश्यक है कि हिंद महासागरीय देशों में आपसी सहयोग, समर्थन और रिश्ते मजबूत बुनियाद पर हों।

















