दीप्सी द्विवेदी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुशासन सैन्य बलों की अनिवार्य पहचान और सेवा की ऐसी शर्त है जिस पर कोई समझौता नहीं हो सकता। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने अनुमति से अधिक छुट्टी पर रहने के कारण सेवा से हटाए गए एक सैन्य कर्मी की याचिका खारिज करते हुए यह बात कही।
याचिकाकर्ता ने सेना सेवा कोर में 1983 में मैकेनिकल ट्रांसपोर्ट ड्राइवर के पद पर ज्वाइन किया था। 1998 में उसे 8 नवंबर से 16 दिसंबर के बीच 39 दिन की छुट्टी स्वीकृत की गई। उसने कृपा आधार पर इस अवकाश को और बढ़ाने का अनुरोध किया था जिस पर उसकी छुट्टी 30 दिन और बढ़ा दी गई। हालांकि इसके बाद भी वह समय पर नौकरी पर नहीं पहुंचा।
उसका दावा था कि उसकी पत्नी बीमार है और उसके इलाज व देखभाल के लिए उसे स्वीकृत समय से ज्यादा छुट्टी पर रहना पड़ा। 15 फरवरी, 1999 में इस बात की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का गठन किया गया। कोर्ट ने इस बात का विचार किया कि इस व्यक्ति को 16 जनवरी, 1999 से भगोड़ा घोषित कर दिया गया था। समरी कोर्ट मार्शल ने उसे दोषी मानते हुए सेवा से बर्खास्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में पत्नी के इलाज से संबंधित कोई मेडिकल सर्टिफिकेट या अन्य ऐसा कोई दस्तावेज रिकॉर्ड पर पेश नहीं किया जो यह साबित करे कि वह गंभीर बीमार थी।