ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने जिला अदालतों को आपराधिक और दीवानी मामलों से जुड़़े सभी रिकॉर्डों का डिजिटलीकरण करने का निर्देश दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि विवाद समाधान तंत्र में प्रौद्योगिकी की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने इस बात का जिक्र किया कि उच्चतम न्यायालय की ई–समिति ने 24 सितंबर 2021 को डिजिटल संरक्षण के लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की थी। पीठ ने कहा कि सभी रिकॉर्ड का उचित संरक्षण और नियमित अद्यतनीकरण (अपडेशन) सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत जिम्मेदारी एवं जवाबदेही प्रणाली विकसित की जानी चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रिया के सुचारू संचालन में मदद मिल सके। पीठ ने कहा‚ ‘उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल यह सुनिश्चित करेंगे कि आपराधिक मुकदमों के साथ–साथ दीवानी मुकदमों के सभी मामलों में रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण सभी जिला अदालतों में विधिवत रूप से निर्धारित समय सीमा के भीतर किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत का यह निर्देश भ्रष्टाचार के एक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक व्यक्ति को सुनाई गई सजा को रद्द किए जाने के दौरान आया। इस मामले में विचाराधीन मुद्दा यह था कि क्या निचली अदालत के रिकॉर्ड के अभाव में अपीलीय अदालत दोषसिद्धि को बरकरार रख सकती है और जुर्माने की रकम बढ़ा सकती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कथित अपराध 28 साल पहले किया गया था और अदालतों के प्रयासों के बावजूद संबंधित निचली अदालत के रिकॉर्ड को फिर से नहीं तैयार किया जा सका है। पीठ ने व्यक्ति को बरी करते हुए कहा‚ ‘अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों के संरक्षण में निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया के अभाव में किसी भी प्रतिबंध से स्वतंत्रता की सुरक्षा शामिल है। निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया अपील दाखिल करने वाले व्यक्ति को अदालत द्वारा निकाले गए निष्कर्षों पर सवाल उठाने का अधिकार देती है। यह तभी सुनिश्चित किया जा सकता है‚ जब अपीलीय अदालत के पास रिकॉर्ड उपलब्ध हो।