नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के कुछ प्रमुख प्रावधानों की वैधता बरकरार रखी। कई याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि ये उन लोगों के समानता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं जिनके खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू की गई है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आईबीसी के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली 391 याचिकाओं पर फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में संहिता की धारा 95 (1), 96 (1), 97 (5), 99 (1), 99 (2), 99 (4), 99 (5), 99 (6) और 100 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। ये प्रावधान फर्म या व्यक्तियों के खिलाफ दिवाला कार्यवाही के विभिन्न चरणों से निपटते हैं।
इन प्रावधानों को संवैधानिक रूप से वैध ठहराते हुए पीठ ने कहा कि वे मनमानी से ग्रस्त नहीं हैं, जैसा कि दलील दी गई है। सीजेआई ने फैसला सुनाते हुए कहा, आईबीसी को संविधान का उल्लंघन करने वाला ठहराने के लिए इसे पूर्वगामी तरीके से संचालित नहीं ठहराया जा सकता। इस प्रकार, हम मानते हैं कि क़ानून स्पष्ट मनमानी के दोषों से ग्रस्त नहीं है।