ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि एनडीपीएस (मादक पदार्थ निरोधक कानून) के तहत पुलिस अधिकारी के सामने दर्ज इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर ट्रायल में इस्तेमाल नहीं होगा। यानी एनडीपीएस एक्ट के तहत पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयान साक्ष्य के तौर पर मान्य नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने पहले के फैसले को पलट दिया और कहा कि आरोपी का एनडीपीएस एक्ट की धारा-67 के तहत दिए गए बयान को इकबालिया बयान नहीं माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन और जस्टिस नवीन सिन्हा ने बहुमत से दिए फैसले में कहा कि इस तरह का बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के विपरीत है। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने अल्पमत में इनके विपरीत मत व्यक्त किया।
-सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में बहुमत से दिया फैसला
बयान दर्ज करने वाले को पुलिस ऑफिसर माना जाए या नहीं
सुप्रीम कोर्ट के पहले के जजमेंट अलग थे। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने मामले को रेफर किया था। तब सवाल भेजा गया था कि क्या एनडीपीएस एक्ट के तहत जो ऑफिसर हैं, वह पुलिस ऑफिसर माने जाएंगे। दूसरा सवाल था कि क्या एनडीपीएस की धारा-67 के तहत लिए गए बयान को इकबालिया बयान माना जाए या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कन्हैया लाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में पहले कहा था कि एनडीपीएस के तहत ऑफिसर पुलिस ऑफिसर नहीं हैं और ऐसे में एविडेंस एक्ट लागू नहीं होता।
जस्टिस रोहिंटन नरीमन की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि इकबालिया बयान अधिकृत अधिकारी के सामने एनडीपीएस के तहत होता है। इस आधार पर एनडीपीएस के तहत आरोपी को दोषी करार दिया जाता है। इस मामले में एविडेंस एक्ट की धारा-25 के अलावा और कोई सेफगार्ड नहीं है। ये सीधे तौर पर अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) अनुच्छेद-20 (3) यानी खुद के खिलाफ गवाही के लिए बाध्य न करने का अधिकार यानी चुप रहने का अधिकार और अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत से पहले के दिए फैसले को पलट दिया और कहा है कि एनडीपीएस की धारा-53 के तहत अधिकारी का जो अधिकार है वह पुलिस अधिकारी ही है और एविडेंस एक्ट की धारा-25 के दायरे में है। यानी उक्त पुलिस अधिकारी के सामने दिया गया इकबालिया बयान एविडेंस एक्ट की धारा-25 के तहत प्रतिबंधित है, उस आधार पर आरोपी को दोषी नहीं करार दिया जा सकता है।