ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के लोकसभा चुनाव में महिला आरक्षण लागू करने के लिए केंद्र सरकार को आदेश देने से मना कर दिया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि महिला आरक्षण कानून के उस प्रावधान को रद्द करना उसके लिए बहुत मुश्किल होगा जो कहता है कि अगली जनगणना के बाद होने वाले परिसीमन के बाद ही इसे लागू किया जा सकता है। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने 2024 के लोकसभा चुनाव से ही महिला आरक्षण को लागू करने की मांग को लेकर कांग्रेस नेता डॉ. जया ठाकुर की याचिका पर यह टिप्पणी की।
पीठ ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया। याचिका में 128वें संविधान (संशोधन) विधेयक को तत्काल लागू करने की मांग की गई, जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है। इस अधिनियम के तहत लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया है।
दलीलें स्वीकार करने से इनकार
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मसले पर पहले से एक याचिका लंबित है। पीठ ने कहा कि 22 नवंबर को पहले से लंबित याचिका के साथ ही इस मामले की सुनवाई की जाएगी। पीठ ने याचिकाकर्ता ठाकुर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इन दलीलों में कहा गया था कि यह समझ में आता है कि पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने के लिए डाटा संग्रह के लिए जनगणना की आवश्यकता है, लेकिन आश्चर्य है कि महिला आरक्षण के मामले में जनगणना का सवाल कहां उठता है।
इस पर न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, आप कह रहे हैं कि महिला आरक्षण लागू करने के लिए जनगणना की आवश्यकता नहीं है लेकिन इसके साथ बहुत सारे मुद्दे हैं। इसे लागू करने से पहले सीटें पहले आरक्षित करनी होंगी और कई अन्य चीजें भी इसमें शामिल हैं। अधिवक्ता सिंह ने याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने और याचिका को अन्य मामले के साथ सूचीबद्ध करने का आग्रह किया।
पीठ ने नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह याचिका खारिज नहीं कर रहे, लेकिन इस पर कोई नोटिस भी जारी नहीं कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि वह सिर्फ इसे लंबित मामले के साथ टैग कर रही है।
प्रावधान अनिश्चितकाल के लिए न रोका जाए
कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने याचिका में कहा कि 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित किए जाने के प्रावधान को अनिश्चित काल के लिए नहीं रोका जाना चाहिए। उन्होंने याचिका में कहा कि पिछले 75 सालों से संसद के साथ-साथ विधानसभाओं में भी महिलाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।