ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी आपराधिक मामले में किशोर (जुवेनाइल) को जमानत देने से तब तक इन्कार नहीं किया जा सकता, जब तक अदालत यह सुनिश्चित न कर ले कि उसका किसी ज्ञात अपराधी से संबंध होने की आशंका है या वह नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरा हो सकता है अथवा उसकी रिहाई से न्याय का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस अगस्टीन जार्ज मसीह की पीठ ने राजस्थान हाई कोर्ट और किशोर न्याय बोर्ड के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें जुवेनाइल को जमानत देने से इन्कार कर दिया गया था। आरोपित पर एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया गया था।
पीठ ने अपने आदेश में अपील को स्वीकार कर लिया। पीठ ने कहा कि अपराध का आरोप झेल रहा है।
जुवेनाइल एक वर्ष से अधिक समय से हिरासत में है और निर्देश दिया कि उसे बिना किसी जमानतदार के जमानत पर रिहा किया जाए।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘हालांकि, क्षेत्राधिकार वाला किशोर न्याय बोर्ड, क्षेत्राधिकार प्राप्त परिवीक्षा अधिकारी को जुवेनाइल को निगरानी में रखने और उसके आचरण के बारे में बोर्ड को समय-समय पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए उचित निर्देश जारी करेगा।’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा ने कहा कि जुवेनाइल को 15 अगस्त, 2023 को हिरासत में लिया गया था और किशोर देखभाल गृह भेज दिया गया। मामले में आरोप पत्र 25 अगस्त, 2023 को दाखिल किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा ने कहा कि हिरासत के बाद से उसने किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 (1) के तहत दो बार जमानत याचिका दायर की, लेकिन उसकी अर्जी खारिज कर दी गई और यहां तक कि हाई कोर्ट ने भी जमानत देने से इन्कार करने के विरुद्ध उसकी अपील खारिज कर दी।