ललित दुबे
वाशिंगटन। अपने किस्म के पहले प्रयोग में अमेरिकी वैज्ञानिकों को प्रयोगशाला में विकसित मानव मस्तिष्क कोशिकाओं (ब्रेन ऑर्गेनॉइड या मिनी ब्रेन) के समूहों को कंप्यूटर चिप्स से जोड़ने में कामयाबी मिली है। इससे कंप्यूटर चिप्स पहचानने जैसे बुनियादी कार्य में सक्षम हो गई। यह बायो-कंप्यूटिंग की दिशा में बड़ी उपलब्धि है। इससे ऐसे हाइब्रिड कंप्यूटर बनाने का रास्ता खुल सकता है, जो मानव मस्तिष्क की तरह काम करेंगे और दक्षता में पारंपरिक मशीनों से आगे निकल जाएंगे।
लाइव साइंस की रिपोर्ट में नेचर इलेक्ट्रॉनिक्स में प्रकाशित शोध के हवाले से बताया गया कि इंडियाना यूनिवर्सिटी, ब्लूमिंगटन के वैज्ञानिकों की टीम ने स्टेम कोशिकाओं से मस्तिष्क बनाया। इसे एक कंप्यूटर चिप से, जबकि ब्रेनवेयर नाम के सिस्टम को एआई टूल से जोड़ा गया। इस हाइब्रिड सेटअप ने आवाज की पहचान की क्षमता प्रदर्शित करते हुए जानकारी को संसाधित करने, सीखने और बनाए रखने के संकेत दिए। इंडियाना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक फेंग गुओ का कहना है कि कंप्यूटिंग के लिए मस्तिष्क ऑर्गेनॉइड का यह पहला प्रयोग है। भविष्य में बायो-कंप्यूटिंग के लिए ऑर्गेनॉइड की संभावनाओं को देखना रोमांचक होगा।
जैव-कंप्यूटिंग में होगी क्रांतिकारी प्रगति
इस शोध ने पारंपरिक कंप्यूटरों के मुकाबले ज्यादा कुशल प्रणालियों की संभावना का संकेत देते हुए जैव-कंप्यूटिंग में क्रांतिकारी प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है। शोध पत्र के मुताबिक मस्तिष्क-प्रेरित कंप्यूटिंग हार्डवेयर का मकसद मस्तिष्क की संरचना और कार्य सिद्धांतों का अनुकरण करना है। इसका इस्तेमाल कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों की सीमाओं को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि मस्तिष्क से प्रेरित सिलिकॉन चिप्स फिलहाल मस्तिष्क के कार्य की पूरी तरह नकल करने में सक्षम नहीं हैं, क्योंकि यह ज्यादातर डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांतों पर बनी है। फेंग गुओ ने कहा, ऑर्गेनॉइड्स ‘मिनी ब्रेन’ की तरह है। ब्रेनवेयर सिस्टम को एआई और ऑर्गेनॉइड के बीच पुल कहा जा सकता है।