ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। एक अहम फैसले में समाज की कठोर वास्तविकता को रेखांकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक आरोपी को हर मामले में अलग-अलग जमानती या जमानतदार देने की जरूरत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि जमानत देना और उसके बाद अत्यधिक और बोझिल शर्तें लगाना, असल में दाएं हाथ से दी गई चीज को बाएं हाथ से छीन लेने जैसा है।
जस्टिस बीआर गवई व जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने एक व्यक्ति की उस याचिका को स्वीकार कर लिया, जिसमें उसने एक मामले में पेश जमानती का इस्तेमाल अन्य मामलों में करने की बात कही थी। पीठ ने कहा, जमानत पर रिहा हुए आरोपी की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए जमानती जरूरी है। साथ ही कोर्ट के सामने ऐसी स्थिति आती है, जहां जमानत पर रिहा आरोपी को कई मामलों में आदेश के अनुसार जमानती नहीं मिल पाता, वहां जमानती देने की जरूरत को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके मौलिक अधिकारों के साथ संतुलित करने की भी जरूरत है।
रिट याचिका को स्वीकार
शीर्ष अदालत ने गिरीश गांधी की रिट याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें धोखाधड़ी और अन्य अपराधों के संबंध में हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और केरल जैसे कई राज्यों में कई मामलों का सामना किया है। उसका कहना था कि दो मामलों में उसके जमानती को अन्य सभी 11 मामलों में इस्तेमाल करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उसका यह भी कहना था कि हालांकि उसे जमानत मिल गई है लेकिन जमानतदार पेश न कर पाने के कारण वह अभी भी हिरासत में है। अदालत ने याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि यह निर्देश न्याय के उद्देश्यों को पूरा करेगा और आनुपातिक और उचित होगा।