संदीप सक्सेना
जकार्ता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्रीय विवादों को लेकर चीन को खास संकेत देते हुए कहा है कि एक नियम आधारित विश्व व्यवस्था बनाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में जी20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन) शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी की यह टिप्पणी बीजिंग द्वारा एक मानचित्र जारी करने के कुछ दिनों बाद आई जिसमें चीन ने अपनी सीमाओं के भीतर अन्य देशों के क्षेत्रों को शामिल किया है। भारत, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान ने चीनी मानचित्र का विरोध किया है।
आसियान-भारतीय शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा, 21वीं सदी एशिया की सदी है। यह हमारी सदी है। इसके लिए कोविड-19 के बाद नियम आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण करने और मानव कल्याण के लिए सभी के प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि आसियान भारत की एक्ट ईस्ट नीति का केंद्रीय स्तंभ है और यह आसियान की केंद्रीयता और हिंद-प्रशांत पर उसके दृष्टिकोण का पूरी तरह से समर्थन करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर पर संपर्क, व्यापार और डिजिटल बदलाव जैसे क्षेत्रों में भारत-आसियान सहयोग को मजबूत करने के लिए 12 सूत्री प्रस्ताव पेश किया जिसमें उन्होंने आतंकवाद, उसके वित्तपोषण और साइबर दुष्प्रचार के खिलाफ सामूहिक लड़ाई और ग्लोबल साउथ की आवाज को बुलंद करने का भी आह्वान किया।
शिखर सम्मेलन में समुद्री सहयोग और खाद्य सुरक्षा पर दो संयुक्त बयानों को भी स्वीकार किया गया। अपने संबोधन में मोदी ने कहा, “मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रगति और ग्लोबल साउथ की आवाज को बुलंद करना सभी के साझा हित में है। ग्लोबल साउथ एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
आसियान के 10 सदस्य देश
इंडोनेशिया, मलेशिया ,फिलीपींस ,सिंगापुर , थाईलैंड ,ब्रुनेई ,वियतनाम ,लाओस ,म्यांमार ,कंबोडिया
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में पीएम मोदी ने चीन पर और तीखे परोक्ष प्रहार किए। इसमें चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने भाग लिया था। ईएएस आसियान सदस्य देशों और ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, रूस और अमेरिका सहित आठ संवाद भागीदारों को समाहित करता है। पीएम मोदी ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का मानना है कि दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता प्रभावी होनी चाहिए और यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुरूप होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने भूराजनीतिक संघर्षों का उल्लेख करते हुए दोहराया कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं है’ और संवाद एवं कूटनीति ही संघर्षों के समाधान का एकमात्र रास्ता है। पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद, अतिवाद और भूराजनीतिक संघर्ष ‘हम सभी’ के लिए ‘बड़ी चुनौतियां’ हैं और वर्तमान वैश्विक परिदृश्य चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों और अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है। ‘अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पूरी तरह से पालन करना अनिवार्य है और सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए सभी की प्रतिबद्धता और संयुक्त प्रयास भी आवश्यक हैं।
पीएम मोदी की टिप्पणी दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर वैश्विक चिंताओं के बीच आई है। आसियान देश दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता (सीओसी) पर जोर दे रहे हैं।
संदीप सक्सेना
जकार्ता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्षेत्रीय विवादों को लेकर चीन को खास संकेत देते हुए कहा है कि एक नियम आधारित विश्व व्यवस्था बनाए जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में जी20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संगठन) शिखर सम्मेलन और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी की यह टिप्पणी बीजिंग द्वारा एक मानचित्र जारी करने के कुछ दिनों बाद आई जिसमें चीन ने अपनी सीमाओं के भीतर अन्य देशों के क्षेत्रों को शामिल किया है। भारत, जापान, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम और ताइवान ने चीनी मानचित्र का विरोध किया है।
आसियान-भारतीय शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने कहा, 21वीं सदी एशिया की सदी है। यह हमारी सदी है। इसके लिए कोविड-19 के बाद नियम आधारित विश्व व्यवस्था का निर्माण करने और मानव कल्याण के लिए सभी के प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की कि आसियान भारत की एक्ट ईस्ट नीति का केंद्रीय स्तंभ है और यह आसियान की केंद्रीयता और हिंद-प्रशांत पर उसके दृष्टिकोण का पूरी तरह से समर्थन करता है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस अवसर पर संपर्क, व्यापार और डिजिटल बदलाव जैसे क्षेत्रों में भारत-आसियान सहयोग को मजबूत करने के लिए 12 सूत्री प्रस्ताव पेश किया जिसमें उन्होंने आतंकवाद, उसके वित्तपोषण और साइबर दुष्प्रचार के खिलाफ सामूहिक लड़ाई और ग्लोबल साउथ की आवाज को बुलंद करने का भी आह्वान किया।
शिखर सम्मेलन में समुद्री सहयोग और खाद्य सुरक्षा पर दो संयुक्त बयानों को भी स्वीकार किया गया। अपने संबोधन में मोदी ने कहा, “मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र की प्रगति और ग्लोबल साउथ की आवाज को बुलंद करना सभी के साझा हित में है। ग्लोबल साउथ एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल अक्सर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों की पहचान करने के लिए किया जाता है।
आसियान के 10 सदस्य देश
इंडोनेशिया, मलेशिया ,फिलीपींस ,सिंगापुर , थाईलैंड ,ब्रुनेई ,वियतनाम ,लाओस ,म्यांमार ,कंबोडिया
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में पीएम मोदी ने चीन पर और तीखे परोक्ष प्रहार किए। इसमें चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने भाग लिया था। ईएएस आसियान सदस्य देशों और ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, रूस और अमेरिका सहित आठ संवाद भागीदारों को समाहित करता है। पीएम मोदी ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का मानना है कि दक्षिण चीन सागर के लिए आचार संहिता प्रभावी होनी चाहिए और यह संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (यूएनसीएलओएस) के अनुरूप होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने भूराजनीतिक संघर्षों का उल्लेख करते हुए दोहराया कि ‘आज का युग युद्ध का नहीं है’ और संवाद एवं कूटनीति ही संघर्षों के समाधान का एकमात्र रास्ता है। पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद, अतिवाद और भूराजनीतिक संघर्ष ‘हम सभी’ के लिए ‘बड़ी चुनौतियां’ हैं और वर्तमान वैश्विक परिदृश्य चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों और अनिश्चितताओं से घिरा हुआ है। ‘अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पूरी तरह से पालन करना अनिवार्य है और सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को मजबूत करने के लिए सभी की प्रतिबद्धता और संयुक्त प्रयास भी आवश्यक हैं।
पीएम मोदी की टिप्पणी दक्षिण चीन सागर में चीन की बढ़ती सैन्य आक्रामकता को लेकर वैश्विक चिंताओं के बीच आई है। आसियान देश दक्षिण चीन सागर पर एक बाध्यकारी आचार संहिता (सीओसी) पर जोर दे रहे हैं।