ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में स्टूडेंट्स को ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में ढेरों टिप्स दिए। इस कार्यक्रम के लिए देशभर के छात्रों ने 20 लाख से अधिक सवाल भेजे। परीक्षा की तैयारी, आत्मविश्वास, मनोवैज्ञानिक मजबूती, प्रतिस्पर्धात्मक सोच और जीत के जज्बे से संबंधित सवालों के जवाब देकर पीएम ने छात्रों के हौसला व मनोबल बढ़ाया।
उन्होंने कहा, ‘शायद इतनी ठंड में पहली बार परीक्षा पर चर्चा हो रही है। आमतौर पर फरवरी में करते हैं, विचार आया कि आप सबको 26 जनवरी का भी लाभ मिले। आप सब कर्तव्य पथ पर गए थे, कैसा लगा। घर जाकर क्या बताएंगे?
छात्रों के सवाल मेरे लिए बहुत बड़ा खजाना
- मां से सीखें टाइम मैनेजमेंट, कोई काम मां को बोझ नहीं लगता
- पीएम से जवाब पाने को 20 लाख स्टूडेंट्स ने भेजे सवाल
मुझे आनंद आता है
देश के कोटि-कोटि विद्यार्थी मेरी परीक्षा ले रहे हैं। मुझे ये परीक्षा देने में आनंद आता है।’ पीएम ने कहा कि छात्र मुझसे लाखों की तादाद में सवाल पूछते हैं, व्यक्तिगत समस्याएं बताते हैं, परेशानियां बताते हैं। सौभाग्य है कि मुझे पता चलता है कि देश का युवा मन क्या सोचता है, किन उलझनों से गुजरता है। देश से उसकी अपेक्षाएं क्या हैं, सरकारों से अपेक्षा क्या हैं। सपने क्या हैं, संकल्प क्या हैं। मेरे लिए ये बहुत बड़ा खजाना है।
सवाल संभाल कर रखें
मैंने मेरे सिस्टम को कहा है कि सारे सवालों को इकट्ठा करके रखिए। 10-15 साल बात सोशल साइंटिस्टों के द्वारा उनका एनालिसिस करेंगे। पीढ़ी और स्थिति बदलने के साथ सपने-संकल्प-सोच के बदलने का आकलन करेंगे। इतना बड़ा डेटा शायद ही कहीं मिले।’
‘परीक्षा पे चर्चा’ का छठा संस्करण
पटना से प्रियंका कुमारी, मदुरई से अश्विनी, दिल्ली से नवतेज के सवाल— अगर नतीजे अच्छे न हों तो परिवार की निराशा से कैसे निपटें? आजकल छात्र हाथ काट ले रहे हैं, वो अपनी भावनाओं को लेकर दूसरों पर भरोसा नहीं करते हैं?
पीएम मोदी का जवाब, ‘अश्विनी आप क्रिकेट खेलती हैं। क्रिकेट में गुगली होती है। निशाना एक होता है, दिशा दूसरी होती है। लगता है कि आप पहली बार में मुझे आउट करना चाहती हो। अगर परिवार के लोगों की अपेक्षाएं हैं तो ये स्वाभाविक हैं। इसमें कुछ गलत भी नहीं है, लेकिन अगर परिवार के लोग अपेक्षाएं सोशल स्टेटस के कारण कर रहे हैं तो वो चिंता का विषय है।
मां का दिया उदाहरण
कभी घर में मां को काम करते देखा है क्या। अच्छा लगता है कि स्कूल जाना है, स्कूल से आना है..मां सब रेडी करके रखती है। मां का टाइम मैनेजमेंट कितना बढ़िया है। सबसे ज्यादा काम मां ही करती रहती है। किसी काम में उसे बोझ नहीं लगता। उसे मालूम है कि मुझे इतने घंटे में ये काम करना ही है। एक्स्ट्रा टाइम में भी वो कुछ ना कुछ क्रिएटिव करती रहेगी। अगर मां को ढंग से ऑब्जर्व करेंगे तो आपको छात्र के तौर पर टाइम मैनेजमेंट कर लेंगे। माइक्रो मैनेजमेंट करना होगा।’