ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सही इतिहास ही अपने अनुभवों से हमें सही दिशा दिखा सकता है। भारत का इतिहास गुलामी का नहीं बल्कि यह विजय का इतिहास है। यह आततायियों के खिलाफ अभूतपूर्व शौर्य और पराक्रम दिखाने वाले वीर योद्धाओं का इतिहास है। उन्होंने कहा कि सदियों से हमें यह बताने की कोशिश की गई कि हम ऐसे लोग हैं जो हमेशा लूटे जाते हैं, मारे जाते हैं और हार जाते हैं। भारत का इतिहास केवल उपनिवेशवाद का नहीं है, यह योद्धाओं का इतिहास है। भारत का इतिहास अत्याचारियों के विरुद्ध पराक्रम, विजय, बलिदान और महान परम्परा का है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में असम के वीर सेनापति लासित बोरफुकन की 400वीं जयंती के उपलक्ष में वर्ष भर चलने वाले उत्सव के समापन समारोह को संबोधित किया। लासित असम की शाही सेना के प्रसिद्ध सेनापति थे। उन्होंने मुगलों को हराकर औरंगजेब की महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ने से सफलतापूर्वक रोका था।
– भारत को विकसित और पूर्वोत्तर को भारत के सामर्थ्य का केंद्र बिंदु बनाना लक्ष्य
प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कहा कि दुर्भाग्य है कि आजादी के बाद भी हमें गुलामी के कालखंड में साजिशन रचा गया इतिहास पढ़ाया जाता रहा है। जरूरत थी कि हम गुलाम बनाने वाले विदेशियों के एजेंडों को बदलें लेकिन ऐसा नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि देश के हर कोने में मां भारती के वीर बेटे बेटियों ने कैसे अपना जीवन समर्पित करते हुए आततायियों का मुकाबला किया, इस इतिहास को जानबूझकर दबाया गया है। उन्होंने पूछा क्या लासित का शौर्य मायने नहीं रखता? इतिहास को लेकर, पहले जो गलतियां हुईं… अब देश उनको सुधार रहा है। यहां दिल्ली में हो रहा ये कार्यक्रम इसका प्रतिबिम्ब है। लासित का जीवन हमें प्रेरणा देता है कि हम व्यक्तिगत स्वार्थों को नहीं, देश हित को प्राथमिकता दें।
प्रधानमंत्री ने आग्रह किया कि छत्रपति शिवाजी महाराज की ही तरह असम के वीर योद्धा के जीवन पर नाट्य पर्व तैयार कर उसे देश के कोने-कोने तक पहुंचाना चाहिए। लासित बोरफुकन के जीवन को प्रेरणादायक बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें वह सीख देते हैं कि देशहित को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए। वे हमें परिवारवाद भाई-भतीजावाद से ऊपर उठकर देश को सर्वोपरि मानने की प्रेरणा देते हैं।
प्रधानमंत्री ने असम की महान धरती को प्रणाम करते हुए कहा कि हमें भारत को विकसित और पूर्वोत्तर को भारत के सामर्थ्य का केंद्र बिंदु बनाना है। उन्होंने कहा कि अगर कोई तलवार के जोर से हमें झुकाना चाहता है, हमारी शाश्वत पहचान को बदलना चाहता है तो हमें उसका जवाब भी देना आता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ दिनों पहले असम सरकार ने लासित बोरफुकन की याद में एक संग्रहालय बनाने की घोषणा की थी। इसके अलावा, वे असम के नायकों के सम्मान में एक स्मारक बनाने की योजना बना रहे हैं। ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों को हमारे इतिहास और नायकों को समझने में मदद करेंगे। इस अवसर पर असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने कहा कि वे इतिहासकारों से विनम्र निवेदन करते हैं कि भारत केवल औरंगजेब, बाबर, जहांगीर या हुमायूं की कहानी नहीं है। भारत लासित बोरफुकन, छत्रपति शिवाजी, गुरु गोबिंद सिंह, दुर्गादास राठौर का है। हमें नई रोशनी में देखने का प्रयास करना चाहिए। यह विश्व गुरु बनने के हमारे सपने को पूरा करेगा।
प्रधानमंत्री मोदी हमेशा हमें अपने इतिहास के गुमनाम नायकों को प्रकाश में लाने के लिए प्रेरित करते हैं। लासित बोरफुकन की गौरवपूर्ण गाथा को देश के सामने लाने का यह हमारा विनम्र प्रयास है। लेकिन सिर्फ सरकार के प्रयास ही काफी नहीं हैं, लोगों और इतिहासकारों के भी प्रयास होने चाहिए।
केंद्रीय मंत्री और असम के पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मेक इन इंडिया’ पहल के माध्यम से देश के लोगों को आत्मनिर्भरता का मंत्र दिया। कार्यक्रम में असम के राज्यपाल जगदीश मुखी और अन्य लोग उपस्थित रहे।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री का गुमनाम नायकों को उचित तरीके से सम्मानित करने का निरंतर प्रयास रहा है। इसी भावना के अनुरूप देश वर्ष 2022 को लचित बोरफुकन की 400वीं जयंती वर्ष के रूप में मना रहा है। इस उत्सव का उद्घाटन इस वर्ष फरवरी में भारत के तत्कालीन माननीय राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा गुवाहाटी में किया गया था। लासित दिवस का तीन दिवसीय समापन समारोह 23 से 25 नवंबर तक नई दिल्ली में आयोजित किया गया। अंतिम दिन के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हुए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इससे जुड़े आयोजन में कहा कि विश्व के सामने हमें अपने इतिहास को गौरवमयी तरीके से सामने रखना होगा। उन्होंने कहा कि हमारे इतिहास को तोड़, मरोड़कर गलत तरीके से लिखा गया है। उन्होंने इतिहास के जानकारों से अपील की कि वे इस विवाद से बाहर निकालने का काम करें।
लासित बोरफुकन
24 नवंबर, 1622 को चराइदेव में जन्मे लासित बोरफुकन अपनी असाधारण सैन्य बुद्धिमत्ता से मुगलों को हराने के लिए जाने जाते हैं। सरायघाट की लड़ाई में उन्होंने औरंगजेब की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को रोक दिया था। आजादी का अमृत महोत्सव समारोह के मौके पर उनकी उपलब्धियों को दर्शाने के लिए भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
लासित बोरफुकन ने 1671 में लड़ी गई सरायघाट की लड़ाई में असमिया सैनिकों को प्रेरित किया और मुगलों को एक करारी व अपमानजनक हार स्वीकार करने को बाध्य किया। लासित बोरफुकन और उनकी सेना की वीरतापूर्ण लड़ाई हमारे देश के इतिहास में प्रतिरोध की सबसे प्रेरक सैन्य उपलब्धियों में से एक है।