नई दिल्ली। क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है लेकिन इतना भी नहीं कि इसे तीर-तुक्के का खेल मान लिया जाए। जीत जाएं तो हम सबसे अच्छे योद्धा और हार जाएं तो पिच, परिस्थिति, प्रेशर या फिर किस्मत को कोसने लगें। विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल और वनडे विश्व कप के रूप में भारतीय टीम के सामने दो बड़ी परीक्षाएं हैं जो तय करेंगी कि श्रेष्ठता की जंग में वह अन्य टीमों से कितनी आगे है, आगे है भी या नहीं।
कई उदाहरण सामने
बेशक भारत की टीम क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में अव्वल है लेकिन कई उदाहरण सामने हैं जो इस दावे पर सवाल उठाते हैं। अच्छा प्रदर्शन करते-करते एकाएक रेत के घरौंदे की तरह टीम ढह जाती है। अभी चार दिन पहले दूसरे वनडे मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत की सबसे बुरी हार हुई। 234 गेंदें शेष रहते ऑस्ट्रेलिया दस विकेट से जीत गया। तीसरे वनडे में 270 रन के सामान्य स्कोर को चेज करने में पसीने छूट गए और मैच के साथ सीरीज भी भारत के हाथ से निकल गई। लगातार 26 घरेलू सीरीज की जीत का सिलसिला शर्मनाक हार के साथ टूटा।
सूर्य को क्या हुआ
360 डिग्री पर शाॅट लगाकर सबको हैरत में डालने वाले सूर्यकुमार लगातार तीन पारियों में शून्य पर आउट हुए, विडंबना देखिये कि तीनों बार पहली ही गेंद पर आउट। क्रिकेट में ‘एक्सट्रीम फ्लक्चुएशन’ किसी भी टीम के लिए अच्छी नहीं। भारतीय टीम के चयनकर्ता, हेडकोच, कोच, मैनेजर और बीसीसीआई को मिल कर सुनिश्चित करना होगा कि टीम इंडिया का परफॉर्मेंस स्थिर रहे, इतना विरोधाभास न रहे कि कभी शेर और कभी ढेर। वनडे विश्व कप सामने है, उससे पहले जून में भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच विश्व क्रिकेट टेस्ट चैंपियनशिप का फाइनल भी है। अभी से कमी-कमजोरियों को ढूंढ़ कर उन्हें दूर करने के लिए सामूहिक स्तर पर मिशन चलाने की आवश्यकता है।