दीपसी द्विवेदी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमानत मिलने के बावजूद लंबे समय तक कैदियों को रिहा न होना चिंताजनक है। निर्धारित शर्तों को पूरा न कर पाने वाले विचाराधीन कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम भी उठाया है। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने सभी न्यायालयों से कहा है कि एक माह के भीतर बॉन्ड नहीं भरने पर कैदियों की जमानत की शर्तों में बदलाव पर विचार करें।
शीर्ष कोर्ट ने दिए ये निर्देश
न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कई निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में जहां अंडरट्रायल या दोषी अनुरोध करता है कि वह रिहा होने के बाद जमानत बांड या जमानत दे सकता है तो ऐसे उपयुक्त मामले में अदालत अभियुक्त को एक निर्दिष्ट अवधि के लिए अस्थायी जमानत देने पर विचार कर सकती है।
पीठ ने यह भी निर्देशित किया कि ‘अगर जमानत मंजूर करने की तारीख से एक महीने के भीतर जमानत बांड नहीं भरा जाता है, तो संबंधित अदालत इस मामले को स्वत: संज्ञान में ले सकती है। साथ ही यह विचार भी कर सकती है कि क्या जमानत की शर्तों में संशोधन या छूट की जरूरत है।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी अंडरट्रायल कैदी या दोषी को जमानत देने वाली अदालत को उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के माध्यम से कैदी को आदेश की सॉफ्ट कॉपी ई-मेल करनी होगी। साथ ही जेल अधीक्षक को ई-जेल सॉफ्टवेयर (या जेल विभाग द्वारा उपयोग किए जा रहे किसी अन्य सॉफ्टवेयर) में जमानत देने की तारीख दर्ज करनी होगी।
शीर्ष अदालत ने यह व्यवस्था भी दी कि ‘यदि जमानत देने की तारीख से सात दिनों की अवधि के भीतर अभियुक्त को रिहा नहीं किया जाता है, तो यह जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वह सचिव, डीएलएसए को सूचित करे। सचिव डीएलएसए अभियुक्तों की आर्थिक स्थिति का पता लगाने को एक पैरालीगल वालंटियर्स या जेल जाने वाले अधिवक्ता की मदद ले सकता है ताकि उसकी रिहाई के लिए हर संभव तरीके से कैदी की मदद की जा सके।
लगभग 5,000 विचाराधीन कैदी जमानत के बाद भी जेल में बंद
इससे पहले राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (एनएएलएसए) ने अदालत को बताया था कि हाल के आंकड़ों के अनुसार लगभग 5,000 विचाराधीन कैदी जमानत दिए जाने के बावजूद जेलों में बंद हैं। इनमें से 1,417 को रिहा कर दिया गया था। शीर्ष अदालत में दायर एक रिपोर्ट में एनएएलएसए ने कहा था कि वह ऐसे सभी विचाराधीन कैदियों (यूटीपी) का ‘मास्टर डेटा’ बनाने की प्रक्रिया में है, जो गरीबी के कारण जमानत या जमानत बांड प्रस्तुत करने में असमर्थ हैं।
बीते 26 नवंबर को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने इस मुद्दे पर भावुक अपील की थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समारोह में अपने संबोधन के दौरान कहा था कि देश की जेलों में ऐसे हजारों कैदी बंद हैं, जिनके पास जमानत पर रिहाई का अदालत का आदेश तो है, लेकिन उनके पास जमानत की राशि के रुपये भी नहीं है। ऐसे में वे जेल से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। राष्ट्रपति मुर्मू ने अदालत और सरकार से ऐसे कैदियों के लिए उपाय करने की अपील की थी।