सिंधु झा
नई दिल्ली। भारत चालबाज चीन की ‘जल युद्ध ‘ नीति की जवाबी तैयारियों में जुट गया है। इस बाबत भारत सरकार अरुणाचल के सुबनसिरी में 11 हजार मेगावाट की क्षमता वाली अब तक की सबसे विशाल पनबिजली परियोजना को अंजाम देगी। कारण साफ है। जिस तरह चीन पूर्वोत्तर से सटी भारतीय सीमाओं पर तेजी से डैम बना रहा, वह चिंता का विषय है। लिहाजा तीन अन्य ठप बिजली परियोजनाएं भी शुरू करने का सरकार ने फैसला किया है। इस दिशा में केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने राष्ट्रीय पनबिजली निगम (एनएचपीसी) को जरुरी निर्देश जारी कर दिए हैं।
सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि भारत के दुश्मन नंबर वन चीन की अरुणाचल की सीमा से सटे मेदोग में ब्रह्मपुत्र नदी ( जिसका चीनी नाम है यारलुंग जांगबो) पर 60 हजार मेगावाट की परियोजना भारत के लिए कई सारे दृष्टिकोण से खतरे की घंटी है जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। इस वजह से बहाव का रुख मोड़ने से नदी में न सिर्फ पानी का स्तर घटेगा बल्कि जब चीन पानी छोड़ेगा तो असम और अरुणाचल में बाढ़ आ सकती है। इतना ही नहीं चीन पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा सकता है। भारत के लिए ब्रह्मपुत्र नदी 30 फीसद मीठे जल और 40 प्रतिशत पनबिजली का स्रोत है। नदी का आधा हिस्सा चीन में है। सूत्र बताते हैं कि साल के मध्य में सुबनसिरी के निचले हिस्से में भारत की दो हजार मेगावाट की परियोजना तैयार हो जाएगी। इस बहुद्देश्यीय परियोजना से न सिर्फ बिजली मिलेगी बल्कि चीन यदि पानी डाइवर्ट करेगा भी तो साल भर नार्थ ईस्ट के लोगों को पानी की किल्लत नहीं होगी। अगर चीन ज्यादा पानी छोड़ेगा तो भारत का डैम उसे बिजली पैदा करने में इस्तेमाल करेगा।
सूत्रों का कहना है कि यह सिर्फ पूर्वोत्तर का नहीं बल्कि पूरे देश का मुद्दा है। चीनी डैम की भंडारण क्षमता ज्यादा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अपने मेड़ोग डैम का उपयोग एक राजनीतिक हथियार के तौर पर कर सकता है। जो भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए चुनौती है।