ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि है कि किसी भी दीवानी व आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही पर रोक (स्टे) छह महीने से अधिक नहीं हो सकती । साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन मुकदमों की कार्रवाई पर पहले से रोक लगी हुई है, उन पर रोक आज से छह महीने बाद खत्म हो जाएगी। शीर्ष अदालत का यह आदेश लंबित मामलों के बोझ को कम करने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।
कुछ अपवादों का जिक्र
शीर्ष अदालत ने हालांकि यह कहा है कि कुछ अपवाद मामलों में कार्यवाही पर रोक छह महीने से अधिक जारी रह सकती है लेकिन इसके लिए अदालत को बाकायदा आदेश पारित करना होगा। ये ऐसे मामले होंगे जिनके बारे में अदालत को लगता हो कि उन मुकदमों पर रोक, उसके निपटारे से अधिक जरूरी है। यह फैसला भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर दिया है।
बेमियादी रोक न लगाएं
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति रोहिंग्टन एफ नरीमन और न्यायमूर्ति नवीन गुप्ता की पीठ ने कहा कि मुकदमे की कार्रवाई पर अनिश्चितकालीन रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। इस स्थिति को सुधारने की दरकार है। पीठ ने कहा कि इस सुधार की दरकार न सिर्फ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में हैं बल्कि सभी दीवानी और फौजदारी मामलों में भी है। कार्यवाही पर रोक लगने से मामला अनिश्चितकाल के लिए लटक जाता है।
कभी-कभी रोक हटने की सूचना नहीं मिलती
पीठ ने यह भी कहा कि कभी-कभी तो रोक हटने की सूचना की जानकारी नहीं पहुंचती और कार्यवाही शुरू नहीं हो पाती। लिहाजा पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर परीक्षण कर सकते हैं लेकिन ट्रायल पर रोक छह महीने से अधिक तक नहीं लगा सकता। उन तमाम दीवानी और आपराधिक मामले जिनमें कार्यवाही पर रोक लगी हुई है, उन पर रोक आज से छह महीने बाद खत्म हो जाएगी। रोक की अवधि खत्म हो जाए तो ट्रायल कोर्ट को खुद व खुद बिना किसी इंतजार के कार्यवाही शुरू कर देनी चाहिए।
आदेश न अंतरिम, न अंतिम
शीर्ष अदालत ने कहा है कि किसी मामले में आरोप तय होने का आदेश पारित किया जाता है तो वह न तो अंतरिम होता है और न ही अंतिम। हाईकोर्ट के समक्ष जब मामला परीक्षण के लिए आए तो हाईकोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मामले के जल्द निपटारे में अनावश्यक बाधा न हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट भी इस संबंध में निर्देश जारी कर सकता है। साथ ही हाईकोर्ट यह निगरानी कर सकता है कि दीवानी या आपराधिक मामला लंबे समय पर लंबित न पड़ा रहे। शीर्ष अदालत ने इस आदेश की प्रति सभी हाईकोर्ट तक पहुंचाने के लिए कहा है जिससे कि इस संबंध में जरूरी कदम उठाए जा सकें।