ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। डेवलपमेंट सेक्टर और उद्योग जगत की जरूरत में कार्यरत लोगों के लिए विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में ‘मास्टर्स इन डेवलपमेंट प्रैक्टिस पाठ्यक्रम शुरू करने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा एक वर्षीय ‘मास्टर्स इन इंजीनियरिंग कोर्स को भी ज्यादा व्यापक तरीके से शुरू करने की योजना है। इस संबंध में कई स्तरों पर विचार-विमर्श चल रहा है। नई शिक्षा नीति के तहत बड़े पैमाने पर आवश्यकता आधारित शिक्षा का खाका तैयार किया जा रहा है।
अधिकारियों के अनुसार एक साल का एम. इंजीनियरिंग कार्यक्रम काम करने वाले पेशेवरों के लिए लाभप्रद होगा जबकि ‘डेवलपमेंट प्रैक्टिस’ विषय पर मास्टर कार्यक्रम इस क्षेत्र के कर्मियों को प्रशिक्षित करने में उपयोगी होगा। एआई और डेटा साइंस, डिजिटल हेल्थ केयर जैसे क्षेत्रों में पी.एच.डी. कार्यक्रम भी होंगे। अभी चुनिंदा संस्थान ही यह कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं। अफसरों ने कहा कि ‘डेवलपमेंट प्रैक्टिस में विशेषज्ञता’ हासिल करने पर स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों जगहों पर विकास संस्थानों में काम के अवसर भी बढ़ जाएंगे। कार्यरत लोगों को विशेषज्ञता आधारित कोर्स से अपने कार्यक्षेत्र में ज्यादा बेहतर कर पाने की संभावना बढ़ेगी। वहीं छात्रों के करियर विकल्प बढ़ेंगे। स्नातक छात्रों को गरीबी, जनसंख्या, स्वास्थ्य, संरक्षण, जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार जैसी वैश्विक सतत विकास चुनौतियों को बेहतर ढंग से पहचानने और संबोधित करने के लिए आवश्यक कौशल और ज्ञान प्रदान करने में यह कोर्स काफी मददगार होगा।
मास्टर ऑफ डेवलपमेंट प्रैक्टिस (एमडीपी) कार्यक्रम युवा पेशेवरों को सतत विकास में करियर के लिए तैयार करेगा। सिद्धांत और व्यवहार में प्रशिक्षण का एक रणनीतिक मिश्रण कोर्स इसके तहत तैयार होगा। समाज की जटिल सतत विकास चुनौतियों को संबोधित करते हुए उचित और प्रभावी जुड़ाव के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और दक्षता से भी यह कोर्स लैस होगा।
यह भी कहा गया कि गरीबी और असमानताएं, सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय और तेजी से बदल रही जलवायु के कारण और प्रभाव कुछ ऐसे विषय हैं जिनका समावेश नए पाठ्यक्रम में किया जा सकता है। दुनिया के कई देशों में यह डिग्री सार्वजनिक नीति, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा और प्राकृतिक और सामाजिक विज्ञान के पाठ्यक्रमों के साथ समग्र प्रशिक्षण प्रदान करती है। भारतीय संस्थानों में भी इसे ध्यान में रखा जाएगा।