ब्लिट्ज ब्यूरो
गोरखपुर। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की चोरी हुई घड़ी की स्विट्जरलैंड में नीलामी उनके परपोते के आग्रह पर भारत सरकार ने रुकवा तो दी लेकिन एक दशक बाद भी वह घड़ी स्वदेश नहीं लाई जा सकी तो यह मामला राज्यसभा में गूंजा। गोरखपुर के रहने वाले डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल ने सदन में सवाल उठाया कि क्या सरकार देश की अस्मिता को वापस लाने का काम करेगी? इस पर विदेश राज्यमंत्री ने बताया कि इसकी जानकारी लेकर सदन को जवाब दिया जाएगा।
गोरखपुर के बेतियाहाता में रहने वाले डॉ. राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र डॉ. अशोक प्रसाद बताते हैं कि घड़ी के चोरी होकर स्विट्जरलैंड पहुंचने की जानकारी 2011 में मिली। दरअसल, जिनेवा के प्रमुख नीलामी घर सदबी ने 13 नवंबर 2011 को घड़ी को नीलाम करने का ऐलान किया। इसके बाद डॉ. अशोक ने स्विट्जरलैंड स्थित तत्कालीन भारतीय राजदूत चित्रा नारायणन को दो बार ई-मेल भेज कर नीलामी रुकवाने और घड़ी को वापस भारत लाने का आग्रह किया। डॉ.अशोक के मुताबिक, उन्होंने भारतीय राजदूत को ई-मेल के जरिए यूनेस्को के चार्टर का भी हवाला दिया जिसके जरिए भारत सरकार को नीलामी रोकने के लिए दखल देने का अधिकार था। इसके बाद भारत सरकार के हस्तक्षेप पर नीलामी तो रोक दी गई लेकिन घड़ी का इंतजार खत्म नहीं हुआ।
गणतंत्र के जन्म पर तोहफे में मिली थी घड़ी
डॉ. अशोक बताते हैं कि रोलेक्स कंपनी ने 26 जनवरी 1950 को भारत के गणतंत्र के बनने के अवसर पर 18 कैरेट सोने की कलाई घड़ी देश के पहले राष्ट्रपति को तोहफे में दी थी। यह घड़ी राष्ट्रपति भवन या पटना के सदाकत आश्रम में होनी चाहिए थी। घड़ी कब और कहां से चोरी हुई, यह जानकारी नहीं है।
चोरी की गई वस्तुओं की सूची में नहीं
डॉ. अशोक के मुताबिक, सदबी नीलाम घर ने बताया था कि उस समय करीब 3,33,000 अमेरिकी डालर में इस घड़ी की नीलामी की संभावना व्यक्त की गई थी जो इस समय करीब पौने तीन करोड़ रुपये के मूल्य के बराबर है। नीलाम घर ने बताया था कि यह चोरी की गई वस्तुओं की सूची में नहीं है, इसलिए नीलामी में रखी गई है। प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के प्रपौत्र- डॉ. अशोक प्रसाद कहते हैं कि डॉ राजेंद्र प्रसाद की विरासत घड़ी की मोहताज नहीं है पर बात राष्ट्रीय सम्पत्ति की है जिसे वापस लाया ही जाना चाहिए।