विनोद शील
400 घंटे बाद जिंदगी से फिर मुलाकात
उत्तरकाशी। देश-दुनिया के करोड़ों लोग जिस घड़ी का पिछले 17 दिन से बेसब्री के साथ इंतजार कर रहे थे, वह आखिरकार 28 नवंबर को आ ही गई। उत्तराखंड के सिलक्यारा स्थित चारधाम आलवेदर रोड परियोजना की निर्माणाधीन सुरंग में 12 नवंबर से फंसे 41 श्रमिकों को सकुशल बाहर निकाल लिया गया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी मजदूरों से फोन और वीडियो पर बात की एवं घटना के दिन से सबका हालचाल जानते रहे। सुरंग के स्थल पर मौजूद उत्तराखंड के सीएम धामी ने भी मजदूरों से बात की और सरकार की ओर से एक-एक लाख का सहायता चेक हर मजदूर को सौंपा व उनके साथ दीपावली मनाई।
बचाने की जंग को मंजिल तक पहुंचाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने पूरी ताकत झोंक रखी थी और देश-विदेश के विशेषज्ञ बचाव अभियान में शामिल थे। तमाम बाधाओं से पार पाते हुए लगभग 400 घंटे चली राहत एवं बचाव की जंग में जिंदगी की जीत हुई और श्रमिकों ने खुली हवा में सांस ली। संभवत: यह देश का पहला ऐसा बड़ा अभियान था, जो इतनी लंबी अवधि तक चला और सभी पीड़ितों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। जिंदगी की जीत का बिगुल दोपहर करीब डेढ़ बजे तब बजा, जब 57 मीटर पर निकास सुरंग का आखिरी स्टील पाइप मलबे को भेदकर अंदर फंसे श्रमिकों तक पहुंचा।
श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान निकास सुरंग से भीतर दाखिल हुए तो मालूम चला कि जिस स्थान पर पाइप आर-पार हुआ, वहां पानी जमा था। निकास सुरंग में तीन मीटर पाइप और जोड़ा गया जिसमें करीब तीन घंटे लगे। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के जवान फिर से सुरंग में दाखिल हुए और स्ट्रेचर ट्राली से सभी श्रमिकों को बाहर निकाला और अपनी दीपावली मनाई। सभी श्रमिक दीपावली के दिन ही सुरंग में फंसे थे।
भाई के लिए सुरंग से निकाला मलबा
सिलक्यारा सुरंग में फंसे छोटे भाई के लिए बॉबी ने सुरंग में घुसकर 17 दिन मलबा निकाला।
फोन पर लूडो खेलकर बिताया समय
सुरंग में फंसे झारखंड के मजदूर चमरा ओरांव ने बाहर आने के बाद बताया कि इन 17 दिनों में उन्होंने फोन पर लूडो खेलकर समय बिताया।
12 नवंबर को सुरंग में फंसते ही सुपरवाइजर गबर सिंह नेगी को पानी भरता दिखा। उन्होंने पंप चला दिया। पंप ने पानी खींचा और 4 इंची पाइप के जरिए बाहर फेंकना शुरू किया। पाइप का एक छोर मलबे के दूसरी ओर था, इसलिए रेस्क्यू टीम को पंप की आवाज आ गई। उन्हें एहसास हो गया कि मजदूर जिंदा हैं। फिर इसी पाइप से मजदूरों से बातचीत हुई। उन्हें चने-बिस्किट भेजे गए। 20 नवंबर को मजदूरों ने खाना मांगा। तब एक 6 इंच का पाइप मलबे में डाला गया। वो आसानी से मजदूरों तक पहुंच गया। इसी के जरिए सॉलिड फूड, जूस आदि भेजे गए। तब जाकर 9 दिन बाद मजदूरों ने खाना खाया। 21 नवंबर को 800 एमएम चौड़े पाइप अंदर भेजे गए, क्योंकि 900 एमएम के पाइप आगे नहीं बढ़ रहे थे। यही पाइप लाइफ लाइन बने, क्योंकि इनमें रैट माइनर्स आसानी से टनल खोद सके। मजदूर पाइप में रेंगकर और कुछ स्ट्रेचर पर लेटकर बाहर निकाले गए।
पीएम की मजदूरों से बात
उत्तरकाशी के सिलक्यारा टनल से निकाले गए सभी 41 मजदूरों को चिन्यालीसौड़ के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टरों और मेडिकल एक्सपर्ट्स की देखरेख में रखा गया। वहां रात भर उन्होंने आराम किया। मजदूरों को देर रात और सुबह नार्मल डाइट दी गई। उनकी मेंटल हेल्थ की काउंसलिंग की गई।
उत्तरकाशी के सीएमओ, आरसीएस पवार ने बताया कि सारे मजदूर स्वस्थ हैं। उनको एम्स ऋषिकेश शिफ्ट किया गया। प्रधानमंत्री मोदी ने टनल से निकाले गए मजदूरों से फोन पर बात की। उन्होंने नवयुवा इंजीनियर कंपनी लिमिटेड के शबा अहमद से पहले बातचीत की।
पीएम ने कहा कि 17 दिन कम नहीं होते। आप लोगों ने बड़ी हिम्मत दिखाई। एक दूसरे का हौसला और धैर्य बनाए रखा। मैं लगातार जानकारी लेता रहता था। सीएम पुष्कर सिंह धामी के संपर्क में था।
शबा : सर, हमें कभी एहसास नहीं हुआ कि हम कमजोर पड़ रहे हैं। कभी घबराहट नहीं हुई। सभी मजदूर अलग अलग राज्यों से थे, लेकिन हम भाई जैसे रहते थे। खाना आता था तो सभी मिलजुल कर खाते थे।
मोदी : मैंने सुना है कि आप लोग टनल में योगा भी करते थे।
शबा : हम सुबह में योगा करते थे। वहां खाने-पीने के अलावा कुछ करने को नहीं था तो हम मॉर्निंग वॉक और योगा करते थे, ताकि सेहत बनी रहे।