ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य के एक नियम पर सवाल खड़ा किया है, जो दृष्टिबाधित लोगों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति की मांग से पूरी तरह बाहर रखता है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट से नोटिस जारी करते हुए सवाल किया है कि आंंखों से न देख सकने वाले लोगों को न्यायिक सेवाओं में शामिल होने की अनुमति क्यों नहीं दी गई।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें एमपी न्यायपालिका से दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को बाहर करने पर आपत्ति जताने वाला एक पत्र मिला है। कोर्ट ने पत्र याचिका को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में परिवर्तित करते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के महासचिव, मध्य प्रदेश राज्य और भारत संघ को नोटिस जारी किया है।
1994 के नियम रोकते हैं दृष्टिबाधितों को
मध्य प्रदेश में 1994 के नियम आंखों से न देख सकने वाले और इस तरह की समस्या से जुड़े लोगों को राज्य में न्यायिक सेवाओं में शामिल होने से रोकते हैं। कोर्ट ने इस मामले में अदालत की सहायता के लिए वकील गौरव अग्रवाल को एमिकस क्यूरी भी नियुक्त किया। बता दें कि एमिकस क्यूरी किसी मामले को सुलझाने में कोर्ट की मदद करता है।