ब्लिट्ज ब्यूरो
आगरा। एक समय चुनाव आयोग की योजना निर्दलीय प्रत्याशियों पर प्रतिबंध लगाने की थी। आयोग और प्रशासन के लिए सिर दर्द माने जाने वाले निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव न लड़ सकें, इसके लिए चुनाव आयोग ने विचार-विमर्श किया था।
आयोग का मानना था कि निर्दलीय प्रत्याशियों से चुनाव में व्यवधान आता है। 1965 में तत्कालीन चुनाव आयुक्त सुंदरम ने लखनऊ में यह जानकारी दी थी। उन्होंने कहा था कि निर्दलीय प्रत्याशियों पर रोक की योजना चुनाव आयोग में विचाराधीन है। निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव लड़ने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। कुछ तो केवल वोट काटने के लिए ही खड़े होते हैं। सुदंरम का कहना था कि कुछ निर्दलीय सदस्यों का लोकतंत्र में चुने जाने का कोई लाभ नहीं है। चुनाव में किसी एक दल को बहुमत न मिलने पर निर्दलीय प्रत्याशियों की खरीद-फरोख्त की आशंका रहती है।
बड़ी संख्या में थे निर्दलीय उम्मीदवार
1967 के आम चुनाव में यूपी में बड़ी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में थे। लोकसभा के लिए 157 और विधानसभा के लिए 1296 नामांकन पत्र दाखिल हुए थे। यह संख्या 1962 के चुनाव की अपेक्षा काफी अधिक थी।