ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। भारत में हृदय प्रत्यारोपण के इतिहास में 3 अगस्त, 1994 का दिन और वह साल बहुत ही महत्वपूर्ण था। हृदय प्रत्यारोपण के प्रयास तो बहुत पहले से चलते रहे, लेकिन पहला सफल हृदय प्रत्यारोपण इसी दिन हुआ था और इसके बाद देश में हृदय प्रत्यारोपण की दिशा ही बदल गई । यह केवल एक चिकित्सकीय उपलब्धि नहीं थी बल्कि ऐसी व्यवस्था की शुरुआत थी जिसमें एक दानकार्ता के दिल को एक जरूरतमंद मरीज के लिए उपलब्ध करा पाना और फिर सही शल्यक्रिया द्वारा सफलता पूर्वक बदल कर मरीज की सेहत को बहाल करना शामिल होता है।
ऐतिहासिक कानून की वजह से संभव हुआ था यह चमत्कार
29 साल पहले हुए यह ऐतिहासिक प्रत्यर्पण भारत के मशहूर हृदय रोग विशेषज्ञ पी की अगुआई में 20 भारतीय चिकित्सकों की टीम ने सफलतापूर्वक किया था। इस सफलता में एक बड़ा योगदान उस कानून का भी था जो 7 जुलाई 1994 को लागू हुआ था और इसके एक महीने के भीतर ही हृदय प्रत्यारोपण की उपलब्धि हासिल कर ली गई। इस कानून में मानव अंगों को निकलने, उनके भंडारण और प्रत्यारोपण के लिए प्रावधान हैं।
देवी राम को चिकित्सा विज्ञान का दैवीय वरदान
इस दिन 40 साल के कर्मचारी देवीराम का हृदय प्रत्यारोपण हुआ था। कार्डियोमायोपैथी की बीमारी से ग्रसित देवीराम को प्रत्यारोपण के करीब तीन महीने पहले से एम्स में भर्ती किया गया था। उनका रक्त समूह एबी पॉजिटिव था। तभी एक महिला की ब्रेन हैमरेज की वजह से मौत हो गई थी। 35 साल की उस महिला के परिवार की सहमति मिल ली गई फिर ऐतिहासिक चमत्कार की तरह प्रत्यारोपण हुआ जो पूरी तरह से सफल रहा। इसके बाद देवीराम 14 साल का जीवन और अधिक जिए थे और ब्रेन हैमरेज से उनकी मृत्यु हुई थी जिसका हृदय प्रत्यारोपण से कोई लेना देना नहीं था। पिछले कुछ सालों में हृदय प्रत्यारोपण की सफलता बढ़ने के साथ इसको लेकर सुविधाओं और संभावनाओं में भी इजाफा होने लगा है। अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने से अभियान चलाए जा रहे हैं तो लोगों में भी अंगदान के महत्व के प्रति समझ और संवेदनशीलता बढ़ रही है।