दीपक द्विवेदी
दरअसल अब देश में नकारात्मक राजनीति नहीं चलने वाली; यह बात सभी दलों को जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतना ही उनके लिए बेहतर होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में विगत दिनों नीति आयोग की बैठक बुलाई गई थी। बैठक का मुख्य एजेंडा था- 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना। बात जब देश के विकास की हो रही हो तो ऐसे मौकों पर दलगत राजनीति का बीच में आना राजनीतिक दलों की सोच पर गंभीर सवाल खड़े करता है। वर्तमान परिदृश्य में यह बात फिलहाल विपक्षी दलों पर विशेष रूप से अधिक लागू हो रही है।
विपक्षी दलों का कर्तव्य एवं अधिकार भी है कि अगर वे सरकार के किसी निर्णय को अपनी दृष्टि से उचित नहीं मानते हैं तो वे उसका समुचित तरीके से विरोध करें लेकिन अगर देश को आगे बढ़ाने पर विचार व मंथन की बात हो रही हो तो उसमें सभी की भागीदारी होनी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि चुनाव में वे भी देश का विकास करने का वादा कर के ही सत्तापक्ष के खिलाफ किसी न किसी क्षेत्र से जीत कर संसद में पहुंचे हैं। साथ ही देश के विकास में सहयोगात्मक परिस्थितियां बनाने का उतना ही उत्तरदायित्व विपक्षी दलों का भी है जितना कि सत्तापक्ष का।
वैसे विरोध जताने के नाम पर कार्यक्रमों का बहिष्कार करना वर्तमान में विपक्ष का एक नया शगल सा बन गया है। कभी नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना तो कभी संसद में सिर्फ विरोध जताने के नाम पर शोर मचाते रहना ही विपक्ष ने अपना धर्म समझ लिया है। अगर गौर से समझा जाए तो इस प्रकार के कार्यों से न तो विपक्ष लोकतंत्र को कोई मजबूती प्रदान कर पा रहा है और न ही अपनी कोई रचनात्मक छवि की छाप भविष्य के मतदाता पर छोड़ पा रहा है। इसलिए नीति आयोग की बैठक का विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों द्वारा बहिष्कार किया जाना भी कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। इस बहिष्कार की घोषणा वे पहले से ही कर चुके थे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चूंकि इस बैठक में शामिल होने की घोषणा पूर्व में कर चुकी थीं, अत: इस बैठक में उनका आना स्वाभाविक ही था। हां, ममता बनर्जी का बैठक को बीच में ही छोड़ कर चले जाना अनेक सवालों को जन्म देने वाला जरूर साबित हो रहा है। संभव है कि ममता बनर्जी मोदी सरकार के विरोध के अपने एजेंडे को और धार देने के साथ ही विपक्षी गठबंधन आइएनडीआइए को भी यह संदेश देना चाहती हों कि आइएनडीआइए के नेता आने वाले समय में वही सब कुछ नहीं करेंगे जैसा कि कांग्रेस चाहेगी। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया है कि उन्हें नीति आयोग की बैठक में बोलने के लिए बहुत कम समय दिया गया और उनका माइक भी बंद कर दिया गया था। ध्यान देने की बात है कि ममता बनर्जी इससे पूर्व भी अपने राज्य में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कई बैठकों का बहिष्कार कर चुकी हैं।
मजेदार बात यह है कि अब लोकसभा में विपक्ष के नेता बन चुके राहुल गांधी भी अक्सर यही आरोप लगाया करते हैं कि संसद में उनका भी माइक बंद कर दिया जाता है। वैसे ऐसे आरोप आधारहीन ही नहीं, बेबुनियाद भी होते हैं। दरअसल संसद अथवा इसी प्रकार की किसी भी बैठक में वक्ता के बोलने का समय पूर्व निर्धारित होता है और तय समय के बाद स्वत: ही माइक बंद हो जाते हैं। स्वयं सरकार भी अनेक अवसरों पर यह स्पष्ट कर चुकी है।
इसलिए इस तरह की बातें उठा कर विपक्ष अपनी ही छवि को स्वयं धूमिल कर रहा है। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि ममता बनर्जी ने नीति आयोग की बैठक बीच में ही छोड़ कर क्या हासिल किया? पर यही सवाल कांग्रेस एवं अन्य सहयोगी तथा विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों के सामने भी उपस्थित है।
वस्तुत: नीति आयोग कोई ऐसा मंच नहीं है जिसे दलगत राजनीति के मैदान का हिस्सा बनाया जाए। नीति आयोग की बैठक का एकमात्र एजेंडा देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के उपायों और सुझावों पर मंथन करना था। इस एजेंडे पर विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को राजनीति करने का ख्याल क्यों आया; यह समझ से परे है? यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि ऐसा तो है नहीं कि राज्यों के विकास के बिना भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य पूरा किया जा सकता है। पर अब यह तथ्य समझ में आने लगा है कि विपक्षी गठबंधन के नेता राष्ट्रहित जैसे गंभीर विषय पर भी अपने तथाकथित निहित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसकी एक झलक संसद में भी दिख चुकी है। विपक्ष का तर्क है कि नीति आयोग की बैठक का बहिष्कार इसलिए किया गया क्योंकि बजट में विपक्ष शासित राज्यों की कथित तौर पर उपेक्षा हुई। यह तर्क जनता को गुमराह करने वाला है। यदि विपक्ष को ऐसा लगा था तो उसने नीति आयोग की बैठक में अपने मन से प्रधानमंत्री को क्यों नहीं अवगत कराया? विपक्ष ने ऐसा क्यों नहीं किया; इसका जवाब तो विपक्ष को ही देना होगा। दरअसल अब सच तो यह है कि देश में नकारात्मक राजनीति नहीं चलने वाली; यह बात सभी दलों को जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतना ही उनके लिए बेहतर होगा।