दीपक द्विवेदी
लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री का शीर्ष पद संभालने के बाद ग्रुप 7 (जी 7) शिखर सम्मेलन के लिए इटली की अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा पूर्ण करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वदेश लौट आए। इटली के अपुलिया में जी7 मंच के तहत पीएम मोदी ने प्रमुख वैश्विक मुद्दों पर सार्थक बातचीत की और शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों के साथ भारत के संबंधों को भी मजबूत किया। जी 7 शिखर सम्मेलन के दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की तथा इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी समेत विश्व के कई नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी की। वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने शिक्षा, रक्षा, परमाणु, अंतरिक्ष आदि क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर बात की तो यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को भी गर्मजोशी से गले से लगाते हुए यह दोहराया कि युद्ध का समाधान सिर्फ बातचीत ही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्रा का विवरण देते हुए कहा, अपुलिया में जी 7 शिखर सम्मेलन में एक बहुत ही उत्पादक दिन रहा। विश्व नेताओं के साथ बातचीत की और विभिन्न विषयों पर चर्चा की। साथ मिलकर, हमारा लक्ष्य ऐसे प्रभावशाली समाधान तैयार करना है जो वैश्विक समुदाय को लाभ पहुंचाएं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक बेहतर दुनिया बनाएं। मैं इटली के लोगों और सरकार को उनके गर्मजोशी भरे आतिथ्य के लिए धन्यवाद देता हूं।
उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी विश्व के सबसे शक्तिशाली सात देशों के जी 7 की शिखर बैठकों में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में गत कई वर्षों से जाते रहे हैं। जी7 में भारत को जो महत्व दिया जाता है, वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत की बढ़ती धाक को ही प्रदर्शित करता है। ऐसे समय में जब इस्राइल-हमास युद्ध भी खत्म होता नहीं दिख रहा, यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे साल में पहुंच चुका है और यूरोपीय देशों के चुनावों में राजनीति का चेहरा भी बदलता नजर आ रहा है, तब दुनिया की सर्वाधिक उन्नत अर्थव्यवस्थाएं मिलकर आगे की रणनीतियां तैयार करने पर मंथन कर रही हैं।
ऐसे में अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया-प्रशांत के बारह विकासशील देशों को भी इस चर्चा में शामिल करने का अर्थ एक अलग ही महत्व रखता है। वस्तुत: भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे देश जी 7 के लिए इसलिए भी अहमियत रखते हैं क्योंकि ये तीनों ही देश इसके प्रतिद्वंद्वी रूस व चीन के साथ ब्रिक्स समूह का भी हिस्सा हैं। वर्तमान परिदृश्य में संयुक्त राष्ट्र जिस तरह से अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा है, उसे देखते हुए वैश्विक व्यवस्था में जी 7 जैसे क्षेत्रीय संगठनों का महत्व बढ़ना स्वाभाविक है। हालांकि एक मायने में इसके बारे में भी कहा जा सकता है कि यह भी अब उतना सशक्त दिखाई नहीं देता है। कारण यह है कि 1980 के दशक में जी 7 देशों का जो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वैश्विक जीडीपी का करीब 60 फीसदी हुआ करता था वह अब घटकर 40 फीसदी पर आ गया है।
इस बीच पिछले दशक के दौरान विश्व का भारत को देखने का दृष्टिकोण भी परिवर्तित हुआ है। इसके कई कारण हैं। कोविड काल में जिस तरह भारत ने खुद को संभालने के अलावा दुनिया के लगभग दो सौ देशों को वैक्सीन उपलब्ध करा कर ऐसे समय में अभूतपूर्व मदद की थी, वह अतुलनीय है और वह भी तब जब उन देशों की कोई सुनने वाला नहीं था। ऐसे समय में जबकि अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्थाएं बड़ी मुश्किल से स्थिर बनी रह पा रही हैं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष व विश्व बैंक जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएं भारत को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक मान रही हैं।
इसके अलावा भारत की जीडीपी भी जहां ब्रिटेन के बराबर है तो वहीं फ्रांस, इटली और कनाडा जैसे देशों से कहीं ज्यादा है। भारत को मिलने वाले महत्व की एक और बड़ी वजह यह भी है कि भारत जहां विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और जी 7 भी लोकतांत्रिक देशों का ही एक समूह है। दरअसल, यह भारत की कूटनीतिक कामयाबी ही है कि आज अमेरिका हो या रूस या फिर यूक्रेन, तीनों ही भारत से करीबी बनाए रखना चाहते हैं। यह वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते वर्चस्व का ही प्रतीक है। इसमें गत वर्ष हुए जी20 के सफल आयोजन ने भी अहम भूमिका निभाई है। जी20 में वैश्विक स्तर पर भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम ्’ के सिद्धांत का प्रसार हुआ तथा दुनिया को यह बताने में हम कामयाब रहे कि भारत सिर्फ जन कल्याण की ही बात करता