आस्था भट्टाचार्य
नई दिल्ली। चीन की चुनौतियों से निपटने को भारतीय नौसेना के लिए तीसरे विमानवाहक पोत के निर्माण को लेकर सक्रियता तेज हो गई है। सूत्रों के अनुसार रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) नए पोत के निर्माण को अगले कुछ महीनों के भीतर मंजूरी प्रदान कर सकती है। यह देश में बनने वाला दूसरा विमानवाहक पोत। लेकिन यह पहले दोनों पोतों से ज्यादा क्षमता का होगा। इसे 2030 तक तैयार करने का लक्ष्य रखा जा सकता है।
सूत्रों के अनुसार 2030 तक चीन के पास पांच विमानवाहक पोत होंगे। चीन में इसके लिए तेजी से कार्य चल रहा है। रूस द्वारा उसे आवश्यक तकनीक दी जा रही है। इसके मद्देनजर भारत भी नौसेना की क्षमता में इजाफा करने में जुटा है। सूत्रों के अनुसार नौसेना ने तीसरे विमानवाहक पोत की रूपरेखा तैयार कर ली है। अब इसे डीएसी की मंजूरी हेतु भेजने के लिए अंतिम रूप दिया जा रहा है। डीएससी रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में कार्य करती है जो किसी रक्षा प्रस्ताव को मंजूरी देने का पहला पड़ाव होता है।
अभी दो विमानवाहक पोत
नौसेना के पास अभी दो विमानवाहक पोत हैं। इनमें रूस से खरीदा गया आईएनएस विक्रमादित्य और भारत में बना आईएनएस विक्रांत शामिल है। चूंकि भारत को चीन और पाकिस्तान से दोहरे मोर्चे पर चुनौती है, इसलिए उसे दो विमानवाहक पोतों की जरूरत रहती है। नौसेना का तर्क है कि तीन पोत होने चाहिए ताकि पोतों को समय-समय पर मरम्मत के लिए भेजा जा सके। बहरहाल, औपचारिक रूप से सहमति के बाद अब इस दिशा में तेजी से कार्य आगे बढ़ रहा है।
सूत्रों के अनुसार तीसरे विमान वाहक पोत का निर्माण भी देश में ही होगा। आईएनएस विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड ने तैयार किया था। यह जिम्मा भी उसी को सौंपा जा सकता है। हालांकि, कुछ आवश्यक उपकरणों के लिए रूस से बातचीत भी चल रही है। नौसेना के ज्यादातर पोत वैसे भी अब देश में ही बन रहे हैं। तीसरा पोत विक्रांत की तुलना में डेढ़ गुना बड़ी क्षमता का होगा। इसका रनवे आईएनएस विक्रमादित्य के रनवे 284 मीटर से ज्यादा होगा। विक्रांत की लंबाई 262 मीटर है।