ब्लिट्ज ब्यूरो
कानपुर। विश्व को कनपुरिया बुकनू का स्वाद चखाने की तैयारी जोरों पर है। भारतीय उत्पादों को पहचान दिलाने वाले पद्मश्री डॉ रजनीकांत ने इस बारे में विस्तार से जानकारी दी।
सैडलरी के बाद बुकनू को भी भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) का दर्जा मिलेगा। शहर के इस खास उत्पाद को न केवल विश्वस्तर पर पहचान मिलेगी, बल्कि व्यापक बाजार में भी उपलब्ध होगा। ‘जीआई मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से मशहूर पद्मश्री डॉ रजनीकांत ने बताया कि जो उत्पाद किसी जगह के नाम से जाने जाते हैं, जिनका इतिहास व भूगोल है, उन्हें बौद्धिक संपदा के रूप में दुनिया के सामने लाने के लिए मोदी सरकार बेहद गंभीर है। पद्मश्री ने कहा कि 2003 में अटल बिहारी सरकार ने सदन में जीआई टैग कानून को पास कराया था। अगर यह कानून आजादी के बाद ही पास हो गया होता तो भारतीय उत्पादों का डंका आज दुनिया में बज रहा होता। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब किसी उत्पाद को टैग मिल जाता है तो वह कानूनी रूप से भारत की बौद्धिक संपदा घोषित हो जाती है। स्थानीय स्तर के उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान बनाने में मदद मिलती है।
मलवां का पेड़ा, मेरठ की गजक को भी मिलेगा दर्जा
मलवां का पेड़ा, मेरठ की गजक, अलीगढ़ के इगलास का चमचम, फरुर्खाबाद की फुलवा आलू को भी जीआई टैग मिलेगा, प्रयास जारी हैं। बुलंदशहर की खुरचन मिठाई समेत प्रदेश के 20 और उत्पादों को पहचान दिलाने की तैयारी है।
21 और होंगे शामिल
डॉ रजनीकांत ने बताया कि देश के 500 व प्रदेश के 54 उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। प्रदेश के 54 में से 21 उत्पाद वाराणसी परिक्षेत्र के हैं। इनमें से बनारसी साड़ी, बनारसी पान, लंगड़ा आम, लकड़ी का खिलौना, गुलाबी मीनाकारी, भदोही की कालीन मुख्य हैं। उन्होंने बताया कि अप्रैल तक 21 और उत्पादों को जीआई का दर्जा मिल जाएगा।
क्या है जीआई टैग यानी भौगोलिक संकेतक
भौगोलिक संकेत (जीआई टैग) एक ऐसा दर्जा है जो विशेष रूप से किसी विशेष क्षेत्र से संबंधित उत्पाद को दिया जाता है। उस विशेष उत्पाद की गुणवत्ता, प्रतिष्ठा और किसी भी अन्य विशेषताओं को आम तौर पर उत्पाद की भौगोलिक उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार माना जाता है। चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री की ओर से स्थानीय उत्पादों को टैग दिया जाता है। हर राज्य में अलग- अलग उत्पादों की पहचान कर उन्हें जीआई टैग दिया गया है। किसी उत्पाद को टैग 10 साल के लिए दिया जाता है। फिर नवीनीकरण कराना पड़ता है।
कानपुर से ली मास्टर डिग्री, 102 उत्पादों को दिलाई पहचान
2019 में पद्मश्री से सम्मानित डॉ रजनीकांत मूल रूप से मिर्जापुर के रहने वाले हैं। मौजूदा समय में वाराणसी में रह रहे डॉ रजनीकांत ने चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय कानपुर से 1982-83 में मास्टर डिग्री हासिल की। वह अब तक सात राज्यों के 102 भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिला चुके हैं। 2017 में राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा का पुरस्कार केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय की ओर से दिया गया था।