ब्लिट्ज ब्यूरो
मुंबई। देवीदास सौदागर का नाम मराठी साहित्यिक हलकों में भले ही कम चर्चित हो लेकिन अब उनके नाम की चर्चा पूरे देश में होने लगी है। दर्जी समुदाय की कठिनाइयों पर लिखे उनके उपन्यास ‘उस्वान’ ने उन्हें मराठी में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2024 दिलवा दिया है।
साहित्य अकादमी ने प्रतिष्ठित युवा पुरस्कार के लिए 23 लेखकों के नामों की घोषणा की है। इसमें अंग्रेजी लेखक वैशाली, हिंदी लेखक गौरव पांडे और मराठी लेखक देवीदास सौदागर का नाम शामिल हैं।
गरीबी से उठे
देवीदास गरीबी से उठे, गरीबी के चलते नियमित स्कूल बंद हुआ लेकिन उन्होंने पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ा। कमाई के साथ ओपन यूनिर्सिटी से पढ़ाई पूरी की। उपन्यास छपवाने के लिए भी उन्होंने बहुत संघर्ष किया।
चौकीदारी का काम भी किया
देवीदास सौदागर की कहानी प्रेरणा से भरी है। सातवीं कक्षा के बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया, दर्जी का काम शुरू किया और 5,000 रुपये पर चौकीदार का काम किया। सौदागर की पुस्तक इस विचार से उपजी है कि किस तरह से रेडीमेड कपड़ों ने सिले हुए कपड़ों की जरूरत को कम कर दिया है।
कोई उपन्यास छापने को राजी नहीं हुआ
पुरस्कार के लिए चुने गए भारत भर के 23 लेखकों में से एक सौदागर ने बताया, ‘कोविड के दौरान कोई काम नहीं था और मैंने पूर्णकालिक लेखन शुरू कर दिया। मैंने 2021 में कविताओं का संकलन और 2022 में ‘उस्वान’ लिखा। मैं इसे 10 प्रमुख प्रकाशकों के पास ले गया, लेकिन उपन्यास को अस्वीकार कर दिया गया।’
इस तरह छपीं 500 प्रतियां
सौदागर ने बताया कि आखिरकार देशमुख एंड कंपनी की मुक्ता गोडबोले ने उपन्यास की 500 प्रतियां प्रकाशित कीं। 33 वर्षीय देवीदास सौदागर महाराष्ट्र के सूखाग्रस्त धाराशिव (पूर्व में उस्मानाबाद) जिले के तुलजापुर में गरीबी में पले बढ़े हैं। अपनी खुद की जमीन न होने के कारण उनके दादा और पिता खेतिहर मजदूर थे और एक अस्थायी घर में रहते थे।
रात में जाते थे स्कूल
सौदागर ने बताया, ‘कक्षा 7 के बाद मुझे नियमित स्कूल छोड़ना पड़ा और कक्षा दस तक मुझे रात्रिकालीन स्कूल में जाना पड़ा। तब तक मेरे पिता ने एक दर्जी की दुकान पर काम करना शुरू कर दिया था और मैं दिन में उनकी मदद करता था।’
पॉलिटेक्निक से मोटर मैकेनिक, पर नहीं मिला काम
उन्होंने 2006 में दो साल के लिए पास के आईटीआई (पॉलिटेक्निक) में मोटर मैकेनिक की पढ़ाई की, लेकिन 2008 की आर्थिक मंदी के कारण उनके पास कोई काम नहीं था। उन्होंने कहा, ‘उसी समय मैंने सिलाई का काम शुरू किया। मैंने जूनियर कॉलेज में दाखिला ले लिया था, लेकिन मेरे पास पढ़ाई के लिए पैसे या समय नहीं था, क्योंकि मैं पूरे समय काम करता था।’
इतिहास से कर डाली एमए
सौदागर ने हिम्मत नहीं हारी और एक मुक्त विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और इतिहास में एमए किया और अपनी नौकरी की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए अंग्रेजी-मराठी टाइपिंग सीखी। सौदागर को लिखने का शौक सातवीं कक्षा से ही शुरू हो गया था।
18 साल की उम्र से लिखने लगे कविताएं
देवीदास ने कहा, ‘हमारे घर में रेडियो भी नहीं था, लेकिन पास के गांव की लाइब्रेरी में कॉमिक्स थीं, जिन्हें मैं पढ़ता था। जैसे-जैसे बड़ा हुआ, मैंने अन्नाभाऊ साठे की किताबें पढ़ना शुरू किया।’ 18 साल की उम्र तक, उन्होंने कविताएं और कहानियां लिखना शुरू कर दिया था। 2014-15 के आसपास, उनकी एक कविता उनके सेलफोन नंबर के साथ एक मराठी अखबार में प्रकाशित हुई थी।
पूंजी जमाकर छपवाईं ंकविताएं
सौदागर ने कहा, ‘उन्होंने मुझे और कविताएं लिखने और एक संग्रह संकलित करने के लिए प्रोत्साहित किया लेकिन मुझे प्रकाशन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए, मैंने 8,000 रुपये बचाए, सोलापुर गया और 2018 में पुस्तक को स्वयं प्रकाशित करवाया। इसकी 200 प्रतियां थीं।
सिर्फ भालचंद्र नेमाड़े ने दिया प्रोत्साहन
देवीदास ने बताया, ‘मैंने कुछ प्रसिद्ध मराठी लेखकों को भेजीं। केवल (मराठी साहित्यकार) भालचंद्र नेमाड़े ने दो पन्नों का पत्र और 100 रुपये का चेक भेजा, जो पुस्तक की कीमत थी। मैंने पत्र को लेमिनेट कर करवाकर अपने पास रखा है।’ वह शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी के बारे में अपने अगले उपन्यास पर काम कर रहे हैं।