ब्लिट्ज विशेष
नई दिल्ली। दक्षिण अफ्रीका में ब्लूमफोन्टेन उच्च न्यायालय ने ‘स्टेट कैप्चर’ और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों से संबंधित नुलाने मामले में सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया है जिनमें भारतीय मूल के दक्षिण अफ्रीकी खरबपति उद्यमी दो भाई अतुल गुप्ता और राजेश गुप्ता भी शामिल हैं। इन पर जैकब जुमा के राष्ट्रपति काल के दौरान गंभीर आरोप लगाए गए थे।
नुलेन कंपनी द्वारा किए गए 24.9 मिलियन रैंड (दक्षिण अफ्रीकी मुद्रा) के बैंक ट्रांजेक्शन का इनसे कोई संबंध नहीं था। कोर्ट ने सुबूतों को नाकाफी और गवाही को झूठा मानते हुए सभी को दोषमुक्त करार दिया।
न्याय की जीत
निश्चित रूप से यह न्याय की जीत है और इस फैसले ने गुप्ता बंधुओं को और भी अधिक मजबूत किया है। फैसले में जज की टिप्पणी किसी भी सरकार के लिए शर्मनाक है। कोर्ट के निर्णय से स्पष्ट है कि दक्षिण अफ्रीकी सरकार सरकार ने निर्दोष अतुल गुप्ता और राजेश गुप्ता भाइयों को फंसाने के लिए मनगढ़ंत आरोप लगाए और तथ्यविहीन सुबूत गढ़े।
– उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के निवासी हैं
– स्टेट कैप्चर मामले को लेकर ब्लूमफोन्टेन हाईकोर्ट की गंभीर टिप्पणियां
कॉमेडी ऑफ द सेंचुरी
उच्च न्यायालय ने नुलाने मामले को ‘कॉमेडी ऑफ द सेंचुरी’ और ‘मृत बच्चे का जन्म’ करार दिया है। दक्षिण अफ्रीकी सरकार का दृष्टिकोण मनगढ़ंत साक्ष्य पर निर्भर था और न्यायाधीश ने बार-बार राज्य की घटिया जांच की आलोचना की।
प्राधिकरण ने पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया
ब्लूमफोन्टेन उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति नोम्पुमेलेलो गुशा ने अपने फैसले में लिखा, ‘तथ्य यह है कि अपनी जांच के दौरान, जांच प्राधिकरण ने किसी आरोपी व्यक्ति से बात तक नहीं की और उसे अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया।’ नुलाने मामले में गुप्ता ब्रदर्स के अधीन कंपनी आईलैंडसाइट इन्वेस्टमेंट की सीईओ रोनिका राघवन, नुलेन इन्वेस्टमेंट कंपनी के निदेशक इकबाल मीर शर्मा और दिनेश पटेल तथा दो सरकारी अधिकारियों को आरोपी बनाया गया था।
गुप्ता ब्रदर्स को मिला दुबई की अदालत का साथ
दक्षिण अफ्रीका सरकार ने अतुल और राजेश गुप्ता को वांछित घोषित करते हुए पिछले साल दुबई में उन्हें गिरफ्तार करने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। हालांकि, इस साल फरवरी में दुबई की अदालत ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के प्रत्यर्पण अनुरोध को खारिज कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष ने अदालत के समक्ष फर्जी और कूटरचित दस्तावेज पेश किए थे।
कोई संबंध साबित नहीं हुआ
अतुल और राजेश गुप्ता के बैंक खातों में नुलाने से लेनदेन के बीच कोई संबंध साबित करने में अभियोजन पक्ष पूरी तरह असफल रहा । कुछ कानूनी विशेषज्ञ सरकार की गुप्ता बंधुओं के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई को महज दक्षिण अफ्रीका की आंतरिक राजनीति से प्रेरित मानते हैं।
झूठा साबित हुआ सरकारी गवाह
नेशनल प्रॉसिक्यूटिंग अथॉरिटी (एनपीए) को नुलेन इन्वेस्टमेंट्स मामले में मुकदमा चलाने में विफलता के कारण उस समय झटका लगा जब पीठासीन न्यायाधीश ने पाया कि एक सरकारी गवाह शैडैक सेजुला जिरह के दौरान टालमटोल करते हुए झूठा साबित हो गया।
यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिटोरिया के वरिष्ठ कानून व्याख्याता डॉ. लेवेलिन कलेंविस ने कहा- क्या परेशान करने वाली बात है कि इस मामले का इस्तेमाल गुप्ता बंधुओं राजेश और अतुल के प्रत्यर्पण के लिए भी किया जा रहा था। उन्होंने कहा, पूरे सम्मान के साथ मैं यह नहीं कह सकता कि दक्षिण अफ्रीका किसी सूरत में प्रत्यर्पण में सफल हो सकता था।
एकतरफा और पूर्व कल्पित इरादे
कुछ पर्यवेक्षक इस कथन को दोनों के विरुद्ध सरकार के एकतरफा और पूर्वकल्पित इरादों के प्रमाण के रूप में देखते हैं। न्याय प्रणाली को सरकार या किसी अन्य बाहरी कारक से प्रभावित नहीं होना चाहिए और प्रत्येक आरोपी व्यक्ति को जांच के दौरान सुनवाई और परामर्श का मौका दिया जाना चाहिए।
एक पक्षीय और पूर्वाग्रही दृष्टिकोण साबित हुआ
नुलाने मामले में आए फैसले ने दक्षिण अफ्रीका सरकार के एक पक्षीय और पूर्वाग्रही दृष्टिकोण की स्पष्ट छाप छोड़ी है, जिसने मनगढ़ंत सबूतों के आधार पर अभियुक्तों को दोषी ठहराने की मांग की थी। फैसले पर न्यायाधीश की टिप्पणियों ने दिखाया है कि सरकार निर्दोष लोगों को दोषी साबित करने के लिए झूठे और मनगढ़ंत गवाहों का जाल बिछा सकती है। सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक निष्पक्ष जांच प्रक्रिया का होना आवश्यक है और सरकार को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। इस दस साल पुराने मामले और झूठे आरोपों के आधार पर दक्षिण अफ्रीका ने 2021 में अतुल और राजेश गुप्ता के खिलाफ इंटरपोल से मदद मांगी थी। गुप्ता बंधुओं पर आज तक कोई आरोप साबित नहीं हुआ। कई लोग आरोपों को राजनीति से प्रेरित मानते हैं, जो अक्सर देश में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान जैकब जुमा के खिलाफ माहौल बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते थे ।सरकार के आदेश पर सर्वोच्च न्यायालय के उप मुख्य न्यायाधीश रेमंड जोंडो की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा सभी आरोपों की जांच भी की गई थी, लेकिन कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ।
आरोप पहली नजर में ही खारिज होने योग्य थे
अपने वकील के माध्यम से गुप्ता परिवार ने कहा, ‘हमें इंसाफ मिला है और हम हाईकोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि अदालत ने राज्य निकायों द्वारा की गई जांच की कड़ी आलोचना की। अगर जांच सही तरीके से की गई होती, तो आरोप पहली नजर में ही खारिज होने योग्य थे। यह इंसाफ की जीत है।’