ब्लिट्ज ब्यूरो
भारत के प्रतिष्ठित टाटा ग्रुप की शुरुआत देश की आज़ादी से पहले1868 में जमशेदजी नसरवानजी टाटा ने बॉम्बे में एक ट्रेडिंग कंपनी के रूप में केवल 21 हज़ार रुपये से की थी। उस समय जमशेद जी टाटा की उम्र केवल 29 साल की थी। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत आयल और टेक्सटाइल मिल से की थी। यहीं से शुरू हुई टाटा ग्रुप की डेढ़ सौ साल पुरानी शानदार विरासत से आज तक के सर्व श्रेष्ठ विकास की ‘इंस्पिरेशनल ग्रोथ स्टोरी’।
आजादी के अमृत काल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2047 के विकसित भारत के संकल्प की शपथ हो और उसमें टाटा ग्रुप के योगदान की बात न हो ये तो मुमकिन ही नहीं है। आज टाटा ग्रुप लगभग 100 कंपनियों का ऐसा समूह है जिसकी शेयर मार्केट में शामिल 18 कंपनियों की बाज़ार वैल्यू 30 लाख करोड़ रुपये से ऊपर निकल चुकी है। यह धनराशि बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज यानी “बीएसई “ के कुल “मार्केट कैप” का 8 फ़ीसदी है ।
टाटा ग्रुप की कुल 29 लिस्टेड कंपनियां हैं। टाटा ग्रुप का ऑपरेशन 100 से ज़्यादा देशों में हो रहा है और इस ग्रुप में 10 लाख से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं।
हम आजादी के अमृत काल के अपने नये भारत के तरक्क ी पसंद युवाओं को बताना चाहते है कि यह नये भारत की प्रगति की एक नई झलक और दुनिया के सामने भारतीय अर्थ व्यवस्था का यह एक नया कीर्तिमान है।
मार्केट में पूंजी निवेश, साख एवं प्रतिष्ठा के मामले में टाटा की गिनती दुनिया के शीर्ष 50 समूहों में होती है। इसके बाद भी टाटा ग्रुप के मालिक रतन टाटा का नाम भारत के सबसे अमीर लोगों की सूची में क्यों नहीं आता? इसकी वजह है कि टाटा की 66 फीसदी इक्विटी उसके विभिन्न ट्रस्टों में बंटी हुई है। इसलिए टाटा की जितनी भी कंपनियों में मुनाफा होता है, वह उन ट्रस्टों के खातों में जाता है। रतन टाटा का नाम खाते में नहीं। इसलिए टाटा ग्रुप के चेयरमैन की व्यक्तिगत संपत्ति इतनी ज्यादा होने के बाद भी वह रईस लोगों की सूची में शामिल नहीं हो पाते। टाटा ग्रुप की कंपनियों और देश के दूसरे औद्योगिक घरानों की कंपनियों के बीच अंतर के बारे में रतन टाटा ने एक बार कहा था कि हम उद्योगपति हैं और दूसरे व्यवसायी।
विजन, विचारधारा और सिद्धांत
अब हम आपको बताते हैं, टाटा ग्रुप के फ़ाउंडर्स यानी इस समूह की स्थापना करने वाले टाटा फैमिली के उन इंडस्ट्री लीडर्स के विज़न उनकी विचारधारा और उनके द्वारा बनाये गये कामकाजी सिद्धांतों के बारे में। टाटा फ़ैमिली का सबसे महत्वपूर्ण उसूल है कि टाटा ग्रुप अपने देश और देश के लोगों की भलाई के लिए सब कुछ करने के लिए सदैव तैयार रहता हैं। इसके लिए पैसे की सीमा टाटा ग्रुप के लिए कोई मायने नहीं रखती।
सबसे बड़ा पुण्य
भारतीय धर्मशास्त्रों के परम सूत्र, “परोपकारह, पुण्याय, पापाय, पर पीडनम” यानी दूसरों की मदद के बराबर कोई पुण्य कार्य नहीं है और दूसरों को परेशान करने से बड़ा कोई पाप नहीं है।
कुछ खास किस्से
अब हम आपको टाटा ग्रुप के अलग-अलग टाइम पीरियड्स के चेयरमैन से जुड़े कुछ क़िस्से बताने जा रहे हैं जिनसे आपको टाटा ग्रुप की बुनियादी सोच और विचारधारा के बारे में पता चलेगा।
1938 में 30 लाख का दान
बात 1893 की है, स्वामी विवेकानंद भाषण देने के लिए जहाज़ से शिकागो जा रहे थे। जहाज में उनकी मुलाक़ात जमशेद जी टाटा से हुई। स्वामी विवेकानंद ने अपनी बातचीत में जमशेद जी टाटा को भारत में एक विश्वस्तरीय विज्ञान संस्थान शुरू करने का सुझाव दिया। जमशेदजी टाटा ने स्वामी विवेकानंद के इसी सुझाव पर 1938 में संस्थान बनाने के लिए 30 लाख रुपए दान देने की घोषणा की। उस समय के हिसाब से यह एक बहुत बड़ी धन राशि थी।
इसी धनराशि की मदद से 1911 में बेंगलुरु में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंसेज की स्थापना हुई। यह आज भारत का नंबर वन उच्च शिक्षा का संस्थान है।
दूसरा किस्सा 1923 का है। प्रथम विश्व युद्ध और जापान में आये बड़े भूकंप की वजह से मार्केट के हालात काफ़ी ख़राब हो गये थे। सभी बिज़नेस वित्तीय संकट से जूझ रहे थे। तब 1924 में टाटा स्टील के कर्मचारियों को वेतन देने तक के लिए पैसे नहीं थे।
कर्मचारी हित ही सर्वोपरि
ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को उनका वेतन देने के लिए उस समय के टाटा ग्रुप के चेयरमैन दोराबजी और उनकी पत्नी मेहेरबाई ने अपनी पूरी निजी संपत्ति इम्पीरियल बैंक में गिरवी रख दी थी।
उस समय उनकी सारी संपत्ति की क़ीमत लगभग एक करोड़ रुपये थी। बैंक से एक करोड़ रुपये का लोन लेकर उन्होंने टाटा स्टील के अपने कर्मचारियों को वेतन दिया। खास बात यह है कि इतने वित्तीय संकट के बाद भी उन्होंने अपने एक भी कर्मचारी को नौकरी से नहीं निकाला।
चैरिटेबल ट्रस्ट को दान
इस संकट से उबरने के बाद तत्कालीन टाटा ग्रुप के चेयरमैन दोराबजी टाटा ने अपनी यह संपत्ति दोराबजी टाटा चैरिटेबल ट्रस्ट को दान में दे दी। इसी ट्रस्ट से बंबई का टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च जैसे मशहूर संस्थानों की स्थापना हुई। 19वीं शताब्दी में जमशेद जी टाटा ने अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए पेंशन और ग्रेच्युटी जैसी कल्याणकारी स्कीम्स की शुरुआत की। 1887 में जमशेद जी टाटा ने पेंशन कोष की स्थापना की। उन्होंने अपने कर्मचारियों की भलाई के लिए 1895 में “दुर्घटना सहायता “और 1901 में “प्रोविडेंट फण्ड स्कीम” को लागू किया था।
टाटा एयरलाइंस का विमान देख समय मिलाते थे लोग
भारत ही नहीं, दुनिया भर के लोग जेआरडी टाटा के समय के पाबंद और उनके काम में परफेक्शन के लिए कायल थे। लोग मिसाल देते थे कि जेनेवा के लोग अपने शहर के ऊपर से निकलने वाले एयर इंडिया के विमान को देख कर अपनी घड़ियों का समय मिलाया करते थे।
1915 में दोराबजी टाटा ने बंबई को धुएं से मुक्ति और अच्छी तरह से बिजली आपूर्ति के लिए खंडाला के पास कुंडाली नदी पर ‘वलवन डैम’ का निर्माण करके जल विद्युत की परियोजना शुरू की थी। पहले मुंबई में कोयले से बिजली बनाई जाती थी। इसके कारण मुंबई में धुएं का प्रदूषण बहुत ही ज़्यादा होता था। टाटा ग्रुप के शानदार और गौरवशाली इतिहास में ये ही नही, अनेकों ऐसे क़िस्से उसकी विरासत के स्वर्णिम इतिहास में दर्ज हैं जो हमारे आज के युवाओं को प्रेरणा और सिद्धांत की शिक्षा देते हैं ।
सुई से जहाज तक निर्माण
भारत के गांवों की पुरानी कहावत रही है टाटा सुई से लेकर जहाज़ तक बनाता है। आज नये विकसित भारत में टाटा सुई से लेकर जहाज़ और नमक से लेकर नैनों टेक्नोलॉजी तक सभी कुछ बना और बेच रहा है।
टाटा के उत्पाद हर एक भारतीय की रोज़मर्रा की ज़िंदगी से जुड़े हुए हैं। नमक, चाय, कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स, कपड़े हो या फिर स्टील, ट्रांसपोर्टेशन हो या इलेक्ट्रिसिटी या आईटी सर्विसेज़। सभी में शामिल है टाटा। पिछले दस सालों में टाटा ग्रुप ने अपनी कामयाबी के कई नये कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
बड़ी विमान कंपनियों का अधिग्रहण
मिसाल के तौर पर टाटा ऑटोकॉम्प द्वारा इलेक्टि्रक व्हीकल्स का तेज़ी से निर्माण, जगुआर और लैंड रोवर जैसी गाड़ियों का प्रॉडक्शन, ‘विस्तारा’ और ‘एयर इंडिया’ जैसी बड़ी विमान कंपनियों का अधिग्रहण करके उसको अच्छी सुविधाओं के साथ यह ग्रुप संचालित कर रहा है। टाटा ग्रुप ने कोविड-19 महामारी के दौरान बेहद प्रशंसनीय कार्य किया।
1500 करोड़ का स्वेच्छा से योगदान
भारत में भविष्य में महामारियों जैसी आपदा से निपटने के लिए पोएम मोदी जी के आह्वान पर बनाये गये पीएम केयर्स फण्ड में टाटा ग्रुप द्वारा 1500 करोड़ रुपये का स्वेच्छा से किया गया योगदान प्रधानमंत्री मोदी जी के विकसित भारत के संकल्प में, उसका एक सराहनीय योगदान कहा जाएगा।
भारत के ऐसे गौरवशाली और भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने टाटा ग्रुप को ‘ब्लिट्ज इंडिया’ और भारतवासियों की शुभकामनाएं और सलाम।
– टाटा ग्रुप के सबसे पहले चेयरमैन जमशेद जी टाटा थे । उनका कार्यकाल 1868 से 1904 तक रहा।
– 1904 से 1932 तक दोराबजी टाटा चेयरमैन रहे।
– 1932 से 1938 तक नौरोज़ी सकलातवाला
– 1938 से 1991 तक जेआरडी टाटा
– 1991 से 2012 तक रतन टाटा।
– 2012 से 2016 तक वायरस मिस्त्री।
– अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 रतन टाटा (अंतरिम चेयरमैन) ।
– 2017 से आज तक एन चंद्रशेखरन टाटा ग्रुप के चेयरमैन हैं ।
-1938 से 1991 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे जेआरडी टाटा को भारत में विमान सेवाओं के जनक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने 1932 में भारत में टाटा एयरलाइंस के नाम से देश की पहली विमान सेवा शुरू की थी।
-1939 में टाटा केमिकल की स्थापना
-1903 में हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र में प्रवेश करके मुंबई में ‘ताज होटल’ की स्थापना की।
-1907 में टाटा ग्रुप ने अपनी पहली स्टील कंपनी शुरू की।
-1910 में टाटा ने अपनी पहली टाटा हाइड्रो इलेक्टि्रक पॉवर सप्लाई कंपनी शुरू की।
-1945 में टाटा मोटर्स और टाटा इंडस्ट्रीज़ की स्थापना।
-1968 में भारत में पहली आइटी सर्विसेज़ कंपनी, ‘टीसीएस’ की शुरुआत।
-1984 में टाइटन इंडस्ट्रीज़ की स्थापना।