नई दिल्ली। भारत की हरित क्रांति के जनक माने जाने वाले कृषि वैज्ञानिक प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन का निधन भारत के कृषि क्षेत्र के लिए अपूर्णीय क्षति है। आजादी के बाद अनाज की भारी कमी से जूझ रहे भारत में 1960 के दशक में स्वामीनाथन के नेतृत्व में ही हरित क्रांति लाई गई। स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का जनक माना जाता है। उनकी नीतियों की बदौलत भारत अनाज की भारी कमी से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा। उन्होंने ज्यादा पैदावार देने वाली धान और गेहूं की किस्मों के आविष्कार में अग्रणी भूमिका अदा की जिसकी वजह से भारत के किसान 1960 के दशक के बाद से अपनी पैदावार बढ़ाने में सफल हो पाए।
हरित क्रांति के जनक
1950 के दशक में भारतीय कृषि शोध संस्थान (आईएआरआई) में काम करते समय वो ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की फसलों पर शोध कर रहे थे। उस दौरान उन्हें अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक नार्मन बोरलॉग के बारे में पता चला, जो उस समय अमेरिका के रॉकफेलर संस्थान के मेक्सिको कृषि कार्यक्रम के लिए काम कर रहे थे।
सूखे में भी अच्छी पैदावार देगी गेहूं की ये किस्म
मेक्सिको में वो ज्यादा पैदावार देने वाली गेहूं की किस्में विकसित कर रहे थे, स्वामीनाथन के कहने पर भारत सरकार ने बोरलॉग को भारत आने का निमंत्रण दिया। गेहूं उगाने वाले कुछ राज्यों का मुआयना करने के बाद उन्होंने मेक्सिकन किस्मों के 100 किलो बीज भारत को दिए। कुछ समय के ट्रायल के बाद इन बीजों को सबसे पहले दिल्ली में बोया गया और पाया गया कि पैदावार काफी बढ़ गई थी। पौधे पहले एक से डेढ़ टन प्रति हेक्टेयर की जगह अब चार से साढ़े चार टन प्रति हेक्टेयर गेहूं देने लगे। 1965-66 और 1966-67 में भारत में दो साल लगातार सूखा पड़ा । अनाज का उत्पादन गिर गया और भारत को अमेरिका से आयात पर निर्भर होना पड़ा। स्वामीनाथन के प्रयास इसी समय में भारत के काम आये और उनकी देखरेख में ज्यादा पैदावार वाली नस्लें उगाई गईं। इनसे भारत में अनाज का उत्पादन बढ़ गया और भारत अनाज के संकट से बाहर निकल गया। भारत की हरित क्रांति के पीछे और भी लोगों का हाथ था, लेकिन जानकारों का मानना है कि स्वामीनाथन की भूमिका केंद्रीय थी। हरित क्रांति के कई तरह के बुरे असर भी चर्चा में रहते हैं लेकिन अनाज संकट से देश को उबारने की उपलब्धि को किसी ने नकारा नहीं है।
किसानों के हितैषी
स्वामीनाथन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि देश के इतिहास के संकट के एक काल में कृषि क्षेत्र में स्वामीनाथन के काम ने करोड़ों लोगों की जिंदगी को बदल दिया और देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। 2004 में भारत में किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामलों के बीच कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था, जिसका अध्यक्ष स्वामीनाथन को ही बनाया गया था। आयोग ने लंबे शोध के बाद सुधार के कई कदम सुझाए जिन्हें ऐतिहासिक माना जाता है।
न्यूनतम समर्थन मूल्य
एमएसपी के लिए इस आयोग ने जो फार्मूला दिया वो स्वामीनाथन फार्मूला नाम से मशहूर है। इसके तहत आयोग ने सुझाया था कि किसी फसल पर एमएसपी, उसकी लागत के औसत खर्च से कम से कम 50 प्रतिशत ज्यादा होनी चाहिए। किसान कल्याण की राह में इसे मील का पत्थर माना जाता है, लेकिन सरकारें आज तक इस फॉर्मूले को लागू नहीं कर पाईं। स्वामीनाथन को पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। वो राज्य के सदस्य भी रहे।
उन्हें 1987 में कृषि क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाला पहला वर्ल्ड फूड प्राइज भी दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च संस्थान की स्थापना की।
स्वामीनाथन का निधन किसानों के लिए कष्टदायी : धनखड़
चंडीगढ़। भाजपा किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं हरियाणा भाजपा के वर्तमान अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने महान वैज्ञानिक डॉ एम.एस. स्वामीनाथन जी के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति के माध्यम से भारत को खाद्यान्न क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने में अहम भूमिका निभाने वाले महान कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन के निधन का समाचार देश भर के किसानों के लिए अति कष्टदायी है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि देश स्वामीनाथन का सदा ऋणी रहेगा।