दीपक द्विवेदी
भारत के लिहाज से इस यात्रा के दौरान हुए समझौते देश के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले साबित होंगे। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी अभी हाल ही में रूस एवं ऑस्टि्रया की यात्रा कर के स्वदेश लौटे हैं।
प्रथम दो कार्यकालों में अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए पड़ोसी देशों को चुनने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार मिले अपने कार्यकाल में पहली विदेश यात्रा के लिए भारत के सदियों पुराने मित्र रूस को चुना। रूस की दोस्ती भारत के लिए हमेशा से फायदेमंद रही है। भारत की सैन्य संबंधी जरूरतों को पूरा करने में रूस ने सदैव अहम भूमिका निभाई है। इस दृष्टि से पीएम मोदी का सबसे पहले रूस जाने का निर्णय निश्चित रूप से एक सराहनीय कदम है। भारत के लिहाज से इस यात्रा के दौरान हुए समझौते देश के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले साबित होंगे। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री मोदी अभी हाल ही में रूस एवं ऑस्टि्रया की यात्रा कर के स्वदेश लौटे हैं।
आज की ताजा वैश्विक परिस्थितियों पर अगर गौर किया जाए तो यूरोप अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर रहा है लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद से उसने मॉस्को के साथ व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिया। इसका फायदा भारत ने उठाया है। रूस के सस्ते तेल ने भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ ही मोदी सरकार को जनता की नाराजगी दूर करने में भी सफलता हासिल करने में बड़ी मदद पहुंचाई। लंबे समय से भारत में पेट्रोलियम की कीमतों को स्थिर रखने में रूसी तेल की बड़ी भूमिका रही है। खासकर इसने चुनाव के समय में मोदी सरकार को बड़ी राहत दी। रूस के साथ ऊर्जा, रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा संस्कृति, पर्यटन आदि अनेक क्षेत्रों में भारत के गहरे संबंध हैं। इसलिए बदली वैश्विक परिस्थितियों में उन पर नए सिरे से विचार-विमर्श भी आवश्यक था।
रूस-यूक्रेन जंग ने जहां तमाम देशों की अर्थव्यवस्था और आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया है, वहीं हमास-इस्राइल युद्ध ने एक अलग ही प्रकार की मानवीय चुनौती दुनिया के समक्ष पेश की। इन स्थितियों में इस यात्रा के जरिये प्रधानमंत्री मोदी ने क्रेमलिन को यह संदेश देने का भी प्रयास किया है कि भारत अपने सबसे विश्वसनीय दोस्त देश की अहमियत को भलीभांति समझता है। रूस भी इस बात के महत्व को समझता है। इसकी पुष्टि इसी बात से हो जाती है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने प्रधानमंत्री मोदी के नई दिल्ली से उड़ान भरने से पहले ही कहा था, ‘हम एक अति महत्वपूर्ण दौरे की आशा करते हैं जो दोनों देशों के आपसी रिश्तों के लिहाज से काफी अहम होगा।’
भारत और रूस ने आपसी व्यापार को वर्ष 2030 तक 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक पहुंचाने पर सहमति जताई है। यह लक्ष्य निवेश को बढ़ावा देकर, आपसी व्यापार के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग और ऊर्जा से लेकर कृषि एवं बुनियादी ढांचा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाकर हासिल किया जाएगा। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच मॉस्को में आयोजित 22वीं वार्षिक द्विपक्षीय शिखर बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में दोनों पक्षों ने विशेष और विशेषाधिकार-प्राप्त रणनीतिक साझेदारी को बढ़ाने की प्रतिबद्धता भी दोहराई। दोनों पक्षों ने रूस-भारत व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देकर द्विपक्षीय बातचीत को अतिरिक्त प्रोत्साहन देने की बात भी कही। प्रधानमंत्री मोदी के इस दौरे ने पश्चिम को भी परोक्ष रूप से यह संदेश दिया कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और वह अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रख कर फैसले लेने वाला देश है। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि पीएम मोदी का मॉस्को दौरा तब हुआ है जब अमेरिका में रूस विरोधी नाटो समूह के देशों की बैठक हो रही थी। किसी एक देश के नाम पर दूसरे देश से संबंधों में घनिष्ठता को महत्व देने का भारत कभी भी पक्षधर नहीं रहा। अब इस तथ्य का अहसास संभवत: पश्चिम को भी होना प्रारंभ हो गया है। शायद इसी वजह से अमेरिका के साथ भारत के संबंध पिछले दो दशकों में अत्यंत बेहतर स्तर पर हैं और वाशिंगटन में भारत के हितों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ी है।
इसके अलावा पीएम मोदी रूस दौरे के बाद दो दिवसीय यात्रा पर यूरोपीय देश ऑस्टि्रया भी पहुंचे। यह यात्रा भी बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि लगभग 41 वर्षों बाद किसी भारतीय पीएम की यह पहली यात्रा है। प्रधानमंत्री मोदी से पहले इंदिरा गांधी ने ऑस्टि्रया की यात्रा की थी। पीएम मोदी की यह यात्रा ऐसे समय में हुई जब भारत और ऑस्टि्रया राजनयिक संबंधों के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों को अपने द्विपक्षीय संबंधों को और गहरा करने और कई भू-राजनीतिक चुनौतियों पर करीबी सहयोग के बारे में बात करने का अवसर