फ्रांस ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आमंत्रित किया था। यह दर्शाता है कि भारत का वैश्विक कद अब काफी बढ़ चुका है। फ्रांस की ओर से पीएम मोदी को फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया जाना पीएम मोदी और भारत के खास दर्जे को स्थापित करता है।
प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी फ्रांस और यूएई की ऐतिहासिक यात्राएं कर के स्वदेश लौट आए हैं। फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस ‘बास्टील डे’ के अवसर पर वह मुख्य अतिथि के तौर पर वहां शामिल हुए। फ्रांस ने प्रधानमंत्री मोदी को अपने राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आमंत्रित किया था। यह दर्शाता है कि भारत का वैश्विक कद अब काफी बढ़ चुका है। फ्रांस की ओर से पीएम मोदी को फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया जाना पीएम मोदी और भारत के खास दर्जे को सत्यापित करता है। इसके पूर्व पीएम मोदी की अमेरिका व मिस्र की सफल यात्रा हुई थी जो भारत ही नहीं पूरे विश्व में चर्चा का विषय रही।
फ्रांस प्रारंभ से ही तथा मुसीबत के समय भी भारत का साथी रहा है। 1947 में ही राजनयिक संबंध बनाकर भारत की आजादी को फ्रांस ने अपनी मान्यता दे दी थी। हालांकि पहले पुडुचेरी से फ्रांसीसी शासन हटाने की कोशिश और फिर भारत के सोवियत संघ की ओर बढ़ते रुझान के चलते शुरुआती चार दशकों में दोनों देशों के आपसी संबंधों में इतनी गर्मजोशी नहीं रही थी पर शनै:-शनै: स्थितियां बदलती चली गईं ंऔर अच्छे नतीजे भी देखने को मिले जिसके चलते फ्रांस के साथ भारत के अच्छे संबंध बने। इस तरह रूस के समान ही फ्रांस भी भारत का भरोसेमंद द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदार है। पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा ऐसे समय हुई है जब दोनों देश द्विपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का रजत जयंती वर्ष मना रहे हैं। मोदी की इस यात्रा से दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों को और विस्तार मिला है तथा उनमें और प्रगाढ़ता आई है। भारत और फ्रांस के बीच मधुर संबंधों की एक खास वजह यह भी है कि दोनों देशों की नीति किसी भी बाहरी दबाव में आए बिना आमने–सामने राष्ट्रीय हितों के अनुकूल विदेश नीति का संचालन करने की है। ऐसा अक्सर देखने में आया है जबकि नाटो का सदस्य होने के बाद भी फ्रांस ने वैश्विक मामलों में ब्रिटेन और अमेरिका से अलग रास्ता पकड़ा है।
1974 में परमाणु परीक्षण के चलते जब अमेरिका ने तारापुर परमाणु प्लांट को अचानक यूरेनियम ईंन्धन देना बंद कर दिया तो फ्रांस ने यह ईंधन उपलब्ध करवाया। फिर सन 1975 में आपातकाल की घोषणा के चलते जब अमेरिका के राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड और ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स ने अपनी भारत यात्राएं स्थगित कर दी थीं तो फ्रांस के राष्ट्रपति याक शिराक जनवरी 1976 में भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि बनकर आए। एक बार फिर 1998 में जब विश्व के सभी ताकतवर देश परमाणु परीक्षण से नाराज होकर भारत पर कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे थे तो फ्रांस ने न केवल प्रतिबंध लगाने से इनकार किया बल्कि भारत से सामरिक वार्ता शुरू करने और सामरिक हिस्सेदारी स्थापित करने वाला वह पहला देश भी बना। इसी सामरिक हिस्सेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी और मेजबान राष्ट्रपति मैक्रों ने मिलकर आने वाले 25 वर्षों में इस सामरिक हिस्सेदारी की अत्यंत विस्तारित रूपरेखा ‘क्षितिज 2047’ जारी की है। अब प्रश्न यह है कि ऐसे वे कौन से तथ्य हैं जो यह भरोसा दिलाते हैं कि ये दोनों देश इस महत्वाकांक्षी सोच को लेकर आगे बढ़ पाएंगे, इसलिए उन पर भी गौर करना लाजिमी बनता है। इन तथ्यों को अगर इतिहास की दृष्टि से निरूपित किया जाए तो भारत और फ्रांस का वैश्विक दृष्टिकोण और व्यवहार, दोनों की अपनी-अपनी ‘सामरिक स्वायत्तता’ को लेकर आसक्ति है। भारत और फ्रांस, दोनों ही स्वतंत्र विदेश नीति के प्रबल पक्षधर हैं। विश्व में दोनों इसी खूबी के लिए जाने जाते हैं। संभवत: इसीलिए भारत को एशिया का फ्रांस और फ्रांस को यूरोप का भारत भी कहा जाता है। इनमें एक अन्य कारण यह भी है कि भारत एक बड़ी होती अर्थव्यवस्था और बड़ा बाजार भी है।
शायद इसीलिए कभी-कभी कतिपय मुद्दों पर मत विभेद होने, व्यापार सीमित रहने और शीतयुद्ध में एक ही खेमे में न होने के बावजूद दोनों देशों में परस्पर समझ और सम्मान सदैव कायम रहा है। आज दोनों ही देश खुद को हिंद-प्रशांत क्षेत्र की जियो-पॉलिटिक्स में पूरी तरह से एकदूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। हिंद महासागर में फ्रांस के कई आइलैंड्स हैं। उनमें करीब दस लाख से अधिक नागरिक रह रहे हैं और यह अति विशाल आर्थिक क्षेत्र भी है। पहले से ही दोनों देश एक मजबूत सामरिक भागीदारी बना चुके हैं जो इस संदर्भ में खासी अहम हो जाती है।
भारत आज विश्व का रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आयातक देश है जबकि फ्रांस विश्व के रक्षा उपकरणों के बड़े निर्यातकों में सबसे तेजी से उभरता हुआ देश। फ्रांस से हमें लड़ाकू विमान से लेकर पनडुब्बी तक मिल रही है। वर्ष 2022 में भारत के रक्षा आयात में अमेरिका का हिस्सा केवल 11 प्रतिशत था जबकि फ्रांस का 29 प्रतिशत जो इस वर्ष के लिए दोनों को, यानी फ्रांस को भारत का और भारत को फ्रांस का, रक्षा उपकरणों के व्यापार में सबसे बड़ा हिस्सेदार बनाता है। आज फ्रांस, रूस, अमेरिका के अलावा इस्राइल, दक्षिण कोरिया, जर्मनी और ब्रिटेन भी भारत के रक्षा आयात के स्रोत बन कर उभरे हैं।
इसके साथ ही भारत ने रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में स्वदेशीकरण पर भी जोर दिया है। इससे पिछले पांच वर्षों में भारत के रक्षा आयात में 11 प्रतिशत की कमी आई है। इस बीच भारत ने अपने रक्षा निर्यात को भी बढ़ावा दिया है। वर्ष 2022 में भारत ने 1.5 अरब डॉलर के रक्षा निर्यात का एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। रूस के साथ चीन की बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए फ्रांस को ये एहसास भी है कि भारत इस दिशा में नए विकल्प पर जरूर सोच रहा होगा और नए विकल्प के तौर पर फ्रांस से बेहतर कोई और देश नहीं हो सकता है जो रक्षा सहयोग तो करता ही है साथ ही तकनीक में भी सहयोग कर रहा है।
संभवत: इसी वजह से पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा में जारी किए गए दस्तावेजों में न केवल रक्षा उपकरणों का व्यापार बल्कि इन पर साझे शोध, विकास और उत्पादन का जिक्र भी नजर आया। इनमें भारत-फ्रांस की सामरिक साझेदारी से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करने और मिलकर समान विचार वाले स्थानीय देशों की रक्षा क्षमता को मजबूत करने पर जोर दिया गया है। यही नहीं, रक्षा क्षेत्र में हिस्सेदारी को अपनी दोस्ती का मुख्य स्तंभ मानते हुए अन्य सभी क्षेत्रों में हिस्सेदारी कायम रखते हुए वैश्विक चुनौतियों पर समझ के आदान-प्रदान की प्रतिबद्धता को भी दोहराया गया है। इससे दोनों देशों की भागीदारी के भविष्य को और बेहतर मजबूत आधार मिलने की आशाएं और सुदृढ़ होती हैं।