ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों को स्वतंत्र महसूस कराने के लिए राज्य को कमजोर आबादी का साथ देना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि नागरिकों को न केवल प्रतिस्पर्धियों के रूप में बल्कि पारस्परिकता और आपसी सम्मान के संबंध में भी एक-दूसरे के साथ जुड़ना चाहिए।
– लोकतंत्र में अल्पमत को भी अपनी बात रखनी चाहिए
उन्होंने कहा, लेकिन ऐसा तभी हो सकता है जब लोकतंत्र सामाजिक ऊंच-नीच और पूर्वाग्रहों को उखाड़ने की दिशा में काम करेगा। लोकतंत्र में सभी नागरिकों को सुरक्षित महसूस करवाना शासन व प्रशासन का दायित्व होता है। इसके लिए राज्य को कमजोर आबादी का पक्ष लेना चाहिए जो संख्यात्मक या सामाजिक अल्पसंख्यक हो सकती है।
लोकतंत्र की सुंदरता
उन्होंने कहा कि हालांकि यह बहुमत के शासन के लोकतांत्रिक सिद्धांत के विपरीत प्रतीत हो सकता है, लेकिन लोकतंत्र की सुंदरता नैतिक स्थिति की भावना है जिसके साथ सभी नागरिक एक देश में भाग ले सकते हैं और इसके निर्णय लेने में आम सहमति है।मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोकतंत्र में बहुमत का अपना रास्ता होता है लेकिन अल्पमत को अपनी बात रखनी चाहिए।
जस्टिस केसी धूलिया मेमोरियल लेक्चर
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में जस्टिस केसी धूलिया मेमोरियल लेक्चर में बोल रहे थे। दिवंगत न्यायमूर्ति केसी धूलिया उच्चतम न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया के पिता हैं। समानता के विषय पर सीजेआई ने कहा कि समान होना न केवल कानून की नजर में समान होना है, बल्कि हमारे साथी नागरिकों द्वारा भी समान माना जाना है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की कि सभी सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को अधिकारों के रूप में तैयार करना और उनके समाधान के लिए अदालतों का सहारा लेना वैकल्पिक लोकतांत्रिक तंत्र के लिए संवैधानिक स्थान को सीमित करता है। उन्होंने कहा, संविधान अन्य तरीकों की कल्पना करता है जिसके माध्यम से सत्ता के दुरुपयोग को वैध रूप से रोका जा सकता है। इसमें महत्वपूर्ण मुद्दों पर विधायिका के अंदर और बाहर बहस और चर्चा शामिल है। कार्यपालिका को संसद द्वारा सदन के अंदर और बाहर नागरिकों द्वारा उसके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता
उन्होंने एक तरफ समझौते की विविधता और दूसरी तरफ बुनियादी जुड़ाव के नियमों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, विविध लोकतंत्रों में, कुछ विचार अधिक व्यापक हो सकते हैं, कुछ विचार अधिक व्यापक रूप से स्वीकार्य हो सकते हैं। विचार इस बात में निहित हैं कि परिणाम क्या हैं और विचार-विमर्श उसी पर चर्चा को सक्षम बनाता है। विचार-विमर्श लोकतंत्र को सक्षम बनाता है और असहमति लोकतंत्र का पोषण करती है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र अव्यवस्थित और अपूर्ण है, लेकिन इसमें न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत अंतर्निहित हैं। उन्होंने कहा कि समय-समय पर निर्वाचित अधिकारियों द्वारा केवल मतदान और शासन पर भरोसा करना इन सिद्धांतों को बनाए बिना लोकतांत्रिक प्रयोग का एक अधूरा पहलू होगा।