ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसला दिया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि पिता द्वारा अर्जित संपत्ति में बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। दरअसल, हिंदू परिवार कानून बेहद पेचीदा और जटिल है। इसकी तुलना किसी गहरे जलाशय से की जा सकती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बेटा भले ही शादीशुदा हो या अविवाहित, उसे कोई कानूनी अधिकार नहीं है कि वह माता-पिता द्वारा अर्जित की गई संपत्ति से बने मकान में रहे।
मिताक्षरा कानून में पुरखों को यह अधिकार दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सीए अरुणाचल मुदलियार बनाम सीए मुरुगनाथ मुदलियार के मामले में इसी के तहत फैसला सुनाया था। मिताक्षरा के अनुसार पिता को यह पूरा अधिकार है कि वह खुद के द्वारा अर्जित संपत्ति किसी को भी दे। उसमें उसके पुरुष उत्तराधिकारियों को कोई अधिकार नहीं है।
क्या है मिताक्षरा कानून
हिंदू उत्तराधिकार संबंधी भारतीय कानून को लागू करने के लिए मुख्य रूप से दो मान्यताओं को माना जाता है- पहला है दायभाग मत, जो बंगाल और असम में लागू है। दूसरा है मिताक्षरा, जो शेष भारत में मान्य है। मिताक्षरा के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से ही अपने पिता की संयुक्त परिवार सम्पत्ति में हिस्सेदारी हासिल हो जाती है। इसमें 2005 में कानून में हुए संशोधन के बाद लड़कियों को भी शामिल किया गया। मिताक्षरा विधि की शाखा पांच उप-शाखाओं में विभाजित है।
पैतृक संपत्ति सिर्फ पिता की
पैतृक संपत्ति के मामले में बेटा पिता पर आश्रित है या उनके मार्फत उसका अधिकार है तो पिता का वर्चस्व और हित अधिक होता है, क्योंकि वह उन्होंने स्वयं अर्जित की होती है।