ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। जलने व अन्य कारणों से स्किन खो चुके मरीजों को फिर से त्वचा मिल सकेगी। त्वचा के अभाव में मरीज संक्रमण का शिकार होकर दम तोड़ देता है। ऐसे मरीजों को बचाने के लिए स्किन ग्राफ्टिंग की जा सकती है। यह प्रयोग बर्न के मामलों में मरीजों की मृत्यु दर को 50 फीसदी तक घटा सकता है।
इसे देखते हुए एम्स में उत्तर भारत के दूसरे त्वचा बैंक की औपचारिक शुरुआत संस्थान के निदेशक डॉ. एम श्रीनिवास ने की। हालांकि इस त्वचा बैंक को अभी दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अंग प्रत्यारोपण संगठन से लाइसेंस का इंतजार है। एम्स प्रशासन को उम्मीद है कि अगले 10-15 दिनों में लाइसेंस मिल जाएगा। यहां पर 18 से 80 वर्ष की उम्र के व्यक्ति के शव से त्वचा ली जा सकेगी। एक व्यक्ति से मिली त्वचा से दो मरीजों की जिंदगी बच सकेगी। इस बारे में बर्न व प्लास्टिक सर्जरी ब्लॉक के प्रमुख डा. मनीष सिंघल ने कहा कि 18 वर्ष से अधिक उम्र के शव से प्राप्त त्वचा को किसी भी मरीज में लगाया जा सकता है। हालांकि त्वचा को व्यक्ति की मौत के छह घंटे के अंदर लेना होगा। जो मरीज पहले से एचआइवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी, त्वचा कैंसर, किसी प्रकार के गंभीर संक्रमण से पीड़ित होगा, उसके शव से त्वचा को नहीं लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति से औसतन 3000 वर्ग सेमी तक त्वचा ली जा सकती है। 30 फीसदी तक जले मरीज में करीब 1000 से 1500 वर्ग सेमी स्किन ग्राफ्ट की जरूरत होती है। ऐसे में एक व्यक्ति से प्राप्त त्वचा को दो व्यक्ति में लगाया जा सकता है। यह त्वचा मृत व्यक्ति की पीठ, जांघों और पैरों से ली जाती है। एम्स के ट्राॅमा सेंटर में हर साल औसतन 100 आंखों का दान होता है। ऐसे में डॉक्टरों को उम्मीद है कि यहां आसानी से 25 लोग त्वचा दान कर सकते हैं। प्रशासन त्वचा दान के लिए भी प्रेरित करेगा। एम्स में हर वर्ष 25 देहदान होती हैं।
संक्रमण से डेढ़ लाख मौतें
देश में हर साल करीब 70 लाख लोग जल जाते हैं। इनमें से करीब डेढ़ लाख मरीजों की मौत संक्रमण से हो जाती है। त्वचा के झुलसने पर एक से तीन सप्ताह के बीच संक्रमण होने की आशंका रहती है।