राकेश शर्मा
शेख हसीना की सरकार का बांग्लादेश में पतन कोई अचानक हुई घटना नहीं है। यह दशकों की साजिश का नतीजा है, एक उभरते हुए, बढ़ते हुए, प्रगति करते हुए, आत्म सम्मान, स्वाभिमान से जीते हुए देश की संभावनाओं को कैसे कुचला जाता है, उसका यह जीता जागता उदाहरण है।
पाकिस्तान से टूटकर 16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश बना। 54 वर्ष से पाकिस्तान बांग्लादेश में हुई अपनी शर्मनाक हार को हजम नहीं कर पा रहा था और तभी से बांग्लादेश में तरह-तरह की परेशानियां खड़ी कर रहा था, चीन, जो पाकिस्तान का छद्म मित्र देश है, ने इसमें पूरा सहयोग किया , इसका कारण था कि शेख हसीना ने चीन के सामने घुटने नहीं टेके, उसे अपने देश में सैनिक अड्डा बनाने की इजाजत नहीं दी, तीस्ता बांध का अनुबंध भारत के साथ कर चीन की आशाओं को आघात पहुंचाया।
तीसरा कोण सीआईए का है जो बांग्लादेश के एक हिस्से पर कब्जा कर भारत के कुछ उत्तर पूर्व के राज्यों को मिलाकर एक क्रिश्चियन स्टेट बनाना चाहता था, इसे भी शेख हसीना ने हकीकत नहीं बनने दिया।
षड्यंत्र रचा गया
इन सब घटनाओं से इन तीनों देशों ने एक लोकप्रिय और अपने देश को पाकिस्तान से बहुत आगे ले जाने वाली नेता को हटाने का षड्यंत्र रचा और उसमें सफल भी हो गये। इसका एक मुख्य कारण शेख हसीना की भारत के प्रति मित्रता और नम्र रुख भी रहा।
आरक्षण की आड़
यह आंदोलन आरक्षण की आड़ में सिर्फ इस त्रिकोणीय साजिश को अंजाम देना था। जमाते इस्लाम और बीएनपी ने इसमें विदेशी ताकतों की मदद कर एक लोकतांत्रिक देश को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में मदद की है। वरना कोई बताए जिस आरक्षण के आंदोलन के लिए यह आंदोलन चलाया गया, उसे बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगित कर दिया था लेकिन फिर आंदोलन शेख हसीना को हटाने के लिए जोर मारने लगा, जब वह इस्तीफा देकर देश छोड़ गईं। यह आंदोलन समाप्त नहीं हुआ।
अराजकता, आगजनी, लूटपाट
पूरे देश में अराजकता, आगजनी, लूटपाट हो रही है। सबसे दुख की बात है कि बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं, उन्हें मारा जा रहा है, हिंदू महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया जा रहा है, उनके घर लूटे जा रहे हैं, जलाये जा रहे हैं, मंदिर तोड़े जा रहे हैं। क्या यह लोकतंत्र को बचाने के लिए हो रहा है या उद्देश्य कुछ और ही है। अब जेहादी इस्लामीकरण जगजाहिर हो रहा है । भारत पर इसका दुष्प्रभाव रोका नहीं जा सकता।
बंग-बंधु ने मुल्क दिया
जिस बंग-बंधु ने मुल्क दिया, आज उन्हीं की मूर्ति तोड़ी जा रही है। सवाल उठता है कि क्या यही इस्लाम है, क्या इसे ही इस्लाम की खूबसूरती कहा जा सकता है? जिस जिन्ना ने मुल्क दिया था, वही एम्बुलेंस में पड़े-पड़े सड़क पर ही मर गया। खास बात देखिए कि जिसे आज ये ‘कायदे आजम’ कहते हैं, उसे ऐसी एम्बुलेंस से लाया जाया जा रहा था।
अचानक से जिसका पेट्रोल ही खत्म हो गया और वो मर गया।
शेख मुजीब को बलिदान के बदले क्या मिला?
खैर, इसी तरह शेख मुजीबुर रहमान ने बांग्लादेश के गठन के लिए संघर्ष किया। बदले में हुआ ये कि उनके घर में 20 लाशें गिरीं, 2 बेटियों के अलावा परिवार में कोई नहीं बचा। आज उनकी ही मूर्ति को उनके ही बनाए मुल्क के लोग तोड़ रहे हैं। वाह रे इस्लाम! भारत में रह कर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली आरफा खानम शेरवानी से लेकर राना अय्यूब को अब बांग्लादेश पर टिप्पणी करनी चाहिए, इस्लाम की इस ‘खूबसूरती’ पर चर्चा करनी चाहिए।
हमारे विपक्ष का सपना
बांग्लादेश में आज जो हुआ है, उसका सपना हमारा विपक्षी, वेस्टर्न डीप एस्टेट, वामपंथी इको सिस्टम पिछले 10 साल से देख रहा है। महबूबा मुफ़्ती की बेटी, फारूक अब्दुल्ला, संजय सिंह और संजय राउत जैसे नेताओं की टिप्पणियों के गहरे नकारात्मक मायने हैं।
5-6 सालों से स्थिति विस्फोटक थी
बांग्लादेश में पिछले 5-6 सालों से स्थिति विस्फोटक थी। वहां एक पार्टी है बीएनपी जो आतंकवादी समर्थक पार्टी भी कही जाती है और इस पार्टी को अमेरिकी राष्ट्रपति के बेटे हंटर बाइडेन का भी समर्थन प्राप्त है।
ये लोग कई सालों से सत्ता पलटने में लगे हुए थे लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से जीत नहीं पाते थे। पिछले चुनावों में इसी कारण बीएनपी ने चुनाव का बहिष्कार किया और चुनाव नहीं लड़ा जिस वजह से शेख हसीना की पुनः सरकार बन गई। 1971 के समय जो लोग मारे गए थे… उनके परिवारों को सरकार ने आरक्षण दिया था। इस बार इन्होंने आरक्षण का मुद्दा बनाया और देश भर में हिंसा हुई। सरकार ने सभी तरह के आरक्षण खत्म कर दिए।
जमाते इस्लाम का बवाल
उसके बाद कुछ दिन शांति रही, फिर बीएनपी और कुछ आतंकवादी संगठनों व वेस्टर्न डीप स्टेट आईएआई द्वारा प्रायोजित जमाते इस्लाम ने फिर से बवाल करना शुरू कर दिया। एक ही दिन में ही 100 से ज्यादा लोग मारे गए और अराजक तत्व प्रधानमंत्री निवास में घुस गए, सड़कों पर कब्जा कर लिया।
सेना नहीं मजबूत
बांग्लादेश की सेना इतनी मजबूत नहीं कि मार्शल लॉ लगा दे। ऐसे में वेस्टर्न डीप स्टेट या आईएसआई का खालिदा जिया जैसा भारत विरोधी कोई प्यादा नई सरकार बनाएगा। याद कीजिये कुछ महीने पहले का राहुल गांधी का बयान जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘मोदी अब सड़क पर जायेगा तो जनता इसको मारेगी’, जी बिल्कुल यही शब्द बोले गए थे। किसानों के फर्जी आंदोलन में ‘मर जा मोदी’ के नारे लगाए जाते रहे हैं, इंदिरा गांधी की तरह मोदी की हत्या करने की बात कई बार की गई है।
पाक जाते हैं विपक्षी नेता
विपक्ष के बड़े नेता पाकिस्तान जा कर उनसे सहायता मांगते हैं ताकि सरकार बदली जा सके। राहुल गांधी यूरोप जाते हैं और सभी यूरोपीय देशों से सहायता मांगते हैं, भारत में सरकार बदलने के लिए।
भारत में ऐसे कई बवाल हुए हैं पिछले 10 सालों में
बांग्लादेश में आरक्षण के मुद्दे पर बवाल हुआ और सरकार ने सब मांगें मान लीं, उसके बाद भी हिंसा नहीं रुकी। असहिष्णुता से शुरू हुई यह नौटंकी आज शेड्यूल कास्ट के आरक्षण को व्यापक बनाने तक हर दिन चलती आ रही है।
सौभाग्य मानिये, केंद्र में मजबूत सरकार है
सौभाग्य मानिये केंद्र में मजबूत सरकार है जो पिछले 10 सालों से ऐसे लोगों से लड़ रही है। हां ऐसा करते हुए कुछ लोगों को कमजोर भी दिखती है लेकिन ऐसा नहीं है। कई बार युद्ध जीतने के लिए कुछ लड़ाई हारनी भी पड़ती है। जब अराजकता फैलती है न तो सबसे पहले आम जन जीवन प्रभावित होता है। बांग्लादेश में अब सरकार नहीं है, लोग हत्प्रभ हैं, क्या करें, कहां जाएं। जो सत्ता के पक्ष वाले हैं, वे डरे हुए होंगे क्यूंकि उन्हें चिन्हित किया जा चुका होगा। आगे क्या होगा उनके साथ, यह भगवान ही जाने। देश में कोई व्यवस्था नहीं होगी,काम धंधे प्रभावित होंगे, देश में हिंसा होगी तो व्यापार नहीं हो पायेगा। रोजमर्रा की चीजों के दाम आसमान पर होंगे। देश में इन्वेस्टमेंट नहीं आएगा,छ लोगों का जीवन स्तर बिगड़ जाएगा, नौकरियां खत्म हो जाएंगी।
…ऐसा भारत में भी हो सकता है
आज हमारा विपक्ष और डीप स्टेट भी शायद ऐसा ही कुछ करना चाहते हैं; ऐसी आशंकाएं भी जताई जाती हैं। असहिष्णुता, एंटी सीएए, किसान आंदोलन, लिंचिंग, रोहित वेमुला, जातिवाद, आरक्षण जैसे कई मुद्दे बनाए जाते रहे हैं हमारे देश में। हर मुद्दे पर हमने बवाल देखे हैं पिछले दस सालों में।
सरकार की सफलता
यह सरकार की सफलता है कि कोई भी बवाल बड़ा नहीं हुआ वरना विपक्ष तो हर बार ऐसे काण्ड करके पीएम मोदी से इस्तीफा ही मांगता है। एक बात याद रखिये, लोकतंत्र में सवाल पूछने की आजादी तब तक ही है जब तक केंद्र में लोकतांत्रिक सरकार है। जिस दिन अराजक तत्व सत्ता में आ जाएंगे या लोकतांत्रिक सरकार गिरेगी, देश भरभरा कर गिर जाएगा। ये जो लाखों करोड़ों बैंक में जमा कर रखे हैं, ये जो मार्केट पोर्टफोलियो बना रखा है, ये जो कोठी फ्लैट ले रखे हैं, ये जो बड़ी-बड़ी कारों में आप घूमते हैं न, जिस दिन अराजक भीड़ सड़क पर आएगी, यह सब एक झटके में गायब हो जायेगा। जब जान ही बचाने के लाले पड़ जाएंगे, तब पैसा, बंगला, गाड़ी, बैंक बैलेंस के बारे में कौन सोचेगा?
4 जून को आप इसी अराजकता से बचे हैं
4 जून को आप इसी अराजकता से बचे हैं। कितने समय तक बचे रहेंगे, यह केंद्र में स्थिर और मजबूत सरकार पर निर्भर करता है। इसलिए बांग्लादेश की दुर्घटना से सजग हो जायें और जो शक्तियां विदेशियों से मिलकर भारत में ऐसी स्थिति उत्पन्न करना चाहती हैं, भारत सरकार को ऐसे तत्वों से निपटने लिए सजग रहने की आवश्यकता है।