ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सियासत में दलबदल का खेल पुराना है। आरोप लगता है कि देश में 2014 के बाद से दल बदलना आम बात हो गई है। हालांकि, आंकड़ों पर गौर करें तो राजनीति में दलबदलू हमेशा रहे हैं। चुनावी संभावनाओं के अनुसार उनको पूरा मौका भी दिया गया।
भाजपा के 135 उम्मीदवार दलबदलू और कांग्रेस के 62
सेंटर फॉर पॉलिटिकल डाटा (टीसीपीडी) डाटाबेस और समाचार रिपोर्ट्स से खोजकर भाजपा और कांग्रेस के दलबदलू उम्मीदवारों (3 मई तक घोषित) की जांच में पता चलता है कि भाजपा के 438 उम्मीदवारों में से 135 (30.8 प्रतिशत) दलबदलू प्रत्याशी हैं, जिनमें से 100 उम्मीदवार 2014 के बाद पार्टी में शामिल हुए हैं।
कांग्रेस के उम्मीदवारों में दलबदलुओं का अनुपात कम है। इसके 327 उम्मीदवारों में से 62 दलबदलू हैं, जिनमें से 55 उम्मीदवार 2014 के बाद पार्टी में शामिल हुए। आंकड़ा यह भी दर्शाता है कि दलबदलू भाजपा से कांग्रेस और कांग्रेस से भाजपा की ओर आते-जाते रहते हैं। भाजपा के 43 दलबदलू पहले कांग्रेस के सदस्य थे। इसी तरह, कांग्रेस के लिए दलबदलुओं का सबसे बड़ा स्रोत भाजपा है, जिसमें पार्टी से 22 सदस्य आए हैं। ये संख्याएं यह भी दर्शाती हैं कि भाजपा और कांग्रेस, दोनों में अधिकांश दल इन दोनों से छोटी पार्टियों से आते हैं। इस चुनाव में भी ऐसे कई मामले आए हैं।
दल बदलकर आने वालों का प्रदर्शन बेहतर
दल बदलकर आए उम्मीदवारों की किस्मत उस पार्टी की किस्मत से जुड़ी होती है, जिसमें वे शामिल हो रहे हैं। 1984 तक कांग्रेस में शामिल होने वाले दलबदलू उम्मीदवार के जीतने की संभावना औसत दलबदलू उम्मीदवार की तुलना में कहीं अधिक थी (आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव को छोड़कर)। 1990 के दशक में जब पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट आई, तो कांग्रेस में दल बदलकर आने वाले नेताओं की जीत की संभावना भी कम हो गई। भाजपा में शामिल होने वाले ऐसे उम्मीदवारों ने 1990 के दशक में औसत दल बदलकर आने वाले नेताओं की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया।
पिछले चुनाव में भी पार्टी बदलने वालों का रहा जोर
भाजपा ने 2019 में कांग्रेस की तुलना में कम दल बदलकर आए उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, पर 2014 में वह कांग्रेस से आगे थी। टीसीपीडी के आंकड़ों के अनुसार भाजपा ने 2019 के आम चुनावों में 23 दलबदलुओं को, जबकि कांग्रेस ने 40 को मैदान में उतारा। 2014 के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की यह संख्या 33 और 19 थी। 1984 (पहला चुनाव जो भाजपा ने लड़ा था) के बाद से हुए दस लोकसभा चुनावों में से सात में कांग्रेस ने भाजपा की तुलना में अधिक दल बदलकर आए नेताओं को मैदान में उतारा।