गुलशन वर्मा
नई दिल्ली। एक प्रवासी मजदूर की पत्नी जो किसी अजनबी के सामने अपना चेहरा आंचल से ढंक लेती थीं, गरीब महिलाओं का यौन उत्पीड़न करने वाले नेताओं को जेल पहुंचा कर आज न केवल संदेशखाली आंदोलन का चेहरा बनीं बल्कि देश की महिलाओं को किसी भी हाल में खुद को कमजोर न समझने का संदेश भी दे रही हैं।
कुछ महीने पहले तक उदासीनजिंदगी जी रही थी
संदेशखाली के पात्रापारा क्षेत्र में रहने वाली रेखा पात्रा कुछ महीने पहले तक एक उदासीन जिंदगी जी रही थीं और किसी अजनबी से बात करते हुए आंचल से अपना चेहरा ढंक लेती थीं, लेकिन आज वह न केवल संदेशखाली आंदोलन का एक चेहरा, बल्कि यौन उत्पीड़ित महिलाओं के लिए कवच बन गई हैं।
आठ फरवरी की हुंकार
बीती आठ फरवरी को जब वह राज्य में सत्तारुढ़ तुणमूल कांग्रेस के तीन आरोपी नेताओं-शहज शेख, शिबू प्रत्यद हाजरा और उत्तम सरदार के आतंक से स्थानीय लोगों को बचाए जाने की मांग करते हुए अन्य पीड़ित महिलाओं के साथ अपनी कमर पर छोटी- सी बच्ची को लादकर झाड़ू, डंडे और जूते लेकर सड़कों पर उतर पड़ी थी, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि वे मामूली ग्रामीण महिलाएं दुर्दांत आरोपियों का बाल भी बांका कर पाएंगी। लेकिन अपने साहस और संघर्ष के बल पर वह न केवल इन दिनों वह मीडिया की सुर्खियों में है, बल्कि राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ महिला सुरक्षा के मुद्दे पर एक मजबूत हथियार के रूप में उभरी हैं।
अदम्य साहस व हौसला
वर्षों से अवैध तरीके से गरीब किसानों की जमीन कब्जाने और स्थानीय महिलाओं को रात में पार्टी ऑफिस में बुलाकर अय्याशी का दरबार सजाने वाले नेता और उसके सहयोगियों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकने वाली रेखा पात्रा ने जिस अदम्य साहस और हौसले का परिचय दिया, उसका ही नतीजा है कि भाजपा नेतृत्व ने लोकसभा चुनाव में उन्हें बशीरहाट से अपना प्रत्याशी बनाया और अब वह न केवल संदेशखाली की यौन उत्पीड़ित महिलाओं की आवाज बन गई हैं, बल्कि जिन किसानों की जमीनें कब्जा कर ली गई थीं, उन्हें भी उन जमीनों को वापस दिलाने की बात कर रही हैं।
‘शक्तिस्वरूपा’ की पहचान
रेखा पात्रा उन थोड़े से प्रत्याशियों में हैं, जिन्हें पार्टी का टिकट मिलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन किया और लोकसभा चुनाव में जीत का भरोसा दिलाते हुए शुभकामनाएं दी। प्रधानमंत्री ने संदेशखाली में आरोपियों के खिलाफ संघर्ष की चर्चा के दौरान उनके साहस की सराहना करते हुए उन्हें ‘शक्तिस्वरूपा’ भी बताया। बताया जाता है कि विगत छह मार्च को जब प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल के दौरे पर गए थे, तो संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं का मुद्दा उनके सामने रखने वाले लोगों के समूह में रेखा पात्रा का नाम भी शामिल था, लेकिन किसी वजह से तब वह पीएम से नहीं मिल पाई थीं।
प्रधानमंत्री ने जमकर तारीफ की
संयोग ऐसा बना कि कुछ ही दिनों बाद फोन पर प्रधानमंत्री ने उनके निश्छल एवं उदार व्यक्तित्व की जमकर तारीफ की और कहा कि ‘ऐसे बहुत कम लोग होते हैं, जो हर किसी के बारे में सोचते हैं, यहां तक कि अपना विरोध करने वालों के प्रति भी। आपका दिल बहुत बड़ा है और आपके ऊपर देश को गर्व होगा। आपने देश के सामने एक उलेखनीय उदाहरण पेश किया है। प्रधानमंत्री से बातचीत करने के बाद भाव विभोर रेखा ने स्थानीय मीडिया को बताया कि प्रधानमंत्री जी के साथ बातचीत करने के बाद अपनी भावनाओं की व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मैंने कभी सपने भी नहीं सोचा था कि मुझे इस काम के लिए चुना जाएगा।
– अब किसानों की जमीनें वापस दिलाने का संकल्प
पारिवारिक पृष्ठभूमि
रेखा पात्रा एक प्रवासी मजदूर की पत्नी हैं। उनके पति चेन्नई में काम करते हैं और वह यहां अकेले बच्चों को संभालती हैं। कई बार तो उसे अपने बच्चों को पीठ पर बांधकर मजदूरी करने जाना पड़ता है। यह प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार की पीड़ा को समझती हैं और लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में रोजगार के अवसर पैदा करने का जज्बा भी रखती हैं।
आंदोलन की नायिका
वह करीब 30 वर्षीय रेखा पात्रा ही हैं जिन्होंने न केवल सबसे पहले अपने साथ हुए यौन शोषण की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई, बल्कि एक महिला मजिस्ट्रेट के समक्ष कैमरे के सामने अपना बयान भी दर्ज कराया था। उनके इस कदम ने संदेशखाली की अन्य पीड़ित महिलाओं को शाहजहां की गिरफ्तारी की मांग करते हुए सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया। नतीजतन अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर अपराधियों को संरक्षण देने वाली पुलिस को शाहजहां शेख व उसके गुर्गों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर अंततः गिरफ्तार करना पड़ा।
नकारात्मकता का भय नहीं
हालांकि संदेशखाली के एक छोटे से वर्ग में उनकी शैक्षिक योग्यता पर सवाल उठाते हुए लोकसभा सदस्य बनने की उनकी क्षमता पर सवालिया निशान लगाया गया है लेकिन रेखा पात्रा लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर दृढ़ हैं और कहती हैं कि विरोधी दल की ओर से किए जा रहे ऐसे नकारात्मक प्रचार से उसके उत्साह और संकल्प पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पीड़ित और आर्थिक रूप से पिछड़ी महिला होने के बावजूद स्थानीय महिलाओं के उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन का उन्होंने केवल नेतृत्व किया, बल्कि आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाकर इस मुकाम तक पहुंची है।
अगर निर्वाचित हुई तो
अगर मैं लोकसभा चुनाव में निर्वाचित हुई, तो यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करूंगी कि बशीरहाट की किसी भी महिला को वह पीड़ा न सहनी पड़े, जो हमें संदेशखाली में झेलना पड़ी। ेहमारे जिन भाइयों से झींगा पालन के लिए जबर्दस्ती जमीन छीन ली गई, उन्हें वह कृषि भूमि वापस लौटा दी जाए ताकि वे अपनी मर्जी से जमीन पर खेती कर सकें।