ब्लिट्ज ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन समानता के अधिकार की सांविधानिक गारंटी को प्रभावित करता है। इस टिप्पणी के साथ शीर्ष अदालत ने राजस्थान और गुजरात में गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा बुनियादी ढांचे के बीच संतुलन खोजने के लिए समिति का गठन किया।
अप्रैल 2021 का अपना आदेश वापस लिया
शीर्ष अदालत ने अप्रैल 2021 के अपने आदेश को वापस ले लिया, जिसमें दोनों राज्यों में 80,000 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र में ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों को भूमिगत करने को कहा गया था।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मिश्रा की पीठ ने कहा कि उच्च वोल्टेज और कम वोल्टेज बिजली लाइनों को भूमिगत करने के लिए व्यापक निर्देश में पुनः विचार की जरूरत है। पीठ ने कहा, जलवायु परिवर्तन समानता के अधिकार की सांविधानिक गारंटी को प्रभावित कर सकता है।
जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं
जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से स्थिर और अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता। स्वास्थ्य का अधिकार (जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है) वायु प्रदूषण, मच्छर जनित बीमारियों में बदलाव, बढ़ते तापमान, सूखा, फसल की विफलता के कारण खाद्य आपूर्ति में कभी, तूफान और बाढ़ जैसे कारकों के कारण प्रभावित होता है।
पीठ ने कहा कि कई नागरिकों के लिए बिजली आपूर्ति की कमी न सिर्फ आर्थिक विकास में बाधा डालती है, बल्कि महिलाओं और कम आय वाले परिवारों समेत समुदायों को भी प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, जिससे असमानताएं बढ़ती हैं।
समिति में ये सदस्य शामिल
पीठ ने जिस विशेषज्ञ समिति का गठन किया उसमें देहरादून के भारतीय वन्यजीव संस्थान के निदेशक डॉ. हरि शंकर सिंह, राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के सचिव डॉ. निरंजन कुमार वासु, पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक बी मजूमदार, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य वन्यजीव वार्डन और प्रधान मुख्य वन संरक्षक डॉ. देवेश गढ़वी, द कॉर्बेट फाउंडेशन के उप निदेशक ललित बोहरा, (हरित ऊर्जा गलियारा) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सचिव और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के संयुक्त सचिव शामिल हैं।