ब्लिट्ज ब्यूरो
स्टॉकहोम। साहित्य का नोबेल नॉर्वे के जॉन फॉसे काे मिला है। उनका लेखन दो मायने में खास है। एक तो वह अपने पात्रों के जरिये रोजमर्रा के जीवन में पेश आने वाली कठिनाइयों और उनसे लड़ने की जिजीविषा को उकेरते हैं। वह असुरक्षा और हताशा जैसी अनकही मानवीय संवेदनों को बेहद शानदार ढंग से शब्दों में गढ़ते हैं। इसके अलावा, वह नार्वे की उस भाषा में लिखते हैं जिसमें ग्रामीण परिवेश की खुशबू बसी है।
1959 में नॉर्वे में जन्मे फॉसे महज सात वर्ष की आयु में एक भयानक हादसे के शिकार हुए थे। हालांकि वे बाल-बाल बच गए लेकिन उसका खौफ उनके जेहन में बहुत गहरे तक बस गया। उनके लेखन में इस हादसे का गहरा असर दिखता भी है। फॉसे ने पहला उपन्यास ‘रेड एंड ब्लैक’ लिखा था जो कि आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर केंद्रित था। फॉसे नार्वे की दो आधिकारिक भाषाओं में से एक निनोर्स्क में लिखते हैं। नॉर्वे की भाषा परिषद के मुताबिक देश की 54 लाख आबादी में से केवल 10 प्रतिशत लोग ही इसका उपयोग करते हैं, हालांकि दूसरी भाषा बोकमाल में लिखने-पढ़ने वाले बाकी लोग इसे पूरी तरह समझते हैं। बोकमाल नार्वे की सत्ता की भाषा है और शहरी वर्ग इसे ही तरजीह देता है।
ईरान की बहादुर महिला नरगिस को नोबेल शांति पुरस्कार
तेहरान। नार्वे की नोबेल कमेटी ने ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को 2023 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया है। उन्होंने ईरान में महिलाओं के दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और मानवाधिकारों को बढ़ावा दिया। उन्होंने सभी के लिए स्वतंत्रता का समर्थन किया। नोबेल कमेटी ने कहा कि नरगिस को इसके लिए निजी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें अब तक 13 बार अरेस्ट किया जा चुका है। यही नहीं 5 बार दोषी ठहराया जा चुका है। नरगिस ने 31 साल जेल में बिताए हैं। यही नहीं उन्हें 154 कोड़े भी मारे गए हैं। नरगिस मोहम्मदी अभी जेल में हैं।
सितंबर 2022 में एक युवा कुर्दिश महिला महसा जिना अमीनी की ईरान में पुलिस हिरासत के दौरान मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद पूरे ईरान में जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। सरकार विरोधी अभियान की कमान नरगिस ने संभाली थी। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता देने की मांग की। इस प्रदर्शन में लाखों की तादाद में ईरानी लोगों ने हिस्सा लिया था। ईरानी सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर अत्यचार किया और 500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए। हजारों लोग घायल हो गए । कई लोगों की आंख रबर की बुलेट लगने से खराब हो गई। प्रदर्शन को कुचलने के लिए अब तक 20 हजार से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया जा चुका है।
अमेरिका की क्लॉडिया गोल्डिन को इकोनॉमिक्स में नोबेल
वाशिंगटन। अमेरिका की क्लॉडिया गोल्डिन को इकोनॉमिक्स का नोबेल प्राइज मिला है। उन्हें मार्केट में महिलाओं के कामकाज और उनके योगदान को बेहतर तरह से समझाने के लिए ये सम्मान दिया गया है। नोबेल कमेटी ने लेबर मार्केट में गोल्डिन के रिसर्च को बेहतरीन माना है। उनकी रिसर्च में लेबर मार्केट में महिलाओं के साथ हो रहे पक्षपात और उनकी कमाई को लेकर जानकारी दी गई है। गोल्डिन ने 200 साल के आंकड़ों को स्टडी कर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें उन्होंने ये बताया कि जेंडर का रोजगार और कमाई पर क्या असर पड़ता है। गोल्डिन के रिसर्च के मुताबिक, मार्केट में महिलाओं के योगदान में सीधी बढ़ोतरी नहीं आई। इसकी जगह ये शुरुआती दौर में घटा और अब बढ़ रहा है।
समय के साथ जैसे-जैसे समाज खेती से उद्योग की तरफ बढ़ा, तो मार्केट में शादीशुदा महिलाओं के योगदान में कमी आई। गोल्डिन की स्टडी में ये भी सामने आया कि 20वीं सदी में महिलाओं ने पुरुषों से बेहतर एजुकेशन हासिल की है। दुनियाभर में अर्थव्यवस्थाओं के मॉर्डनाइजेशन के बावजूद महिलाओं की पुरुषों के मुकाबले कमाई काफी कम है।
ब्लिट्ज ब्यूरो
स्टॉकहोम। साहित्य का नोबेल नॉर्वे के जॉन फॉसे काे मिला है। उनका लेखन दो मायने में खास है। एक तो वह अपने पात्रों के जरिये रोजमर्रा के जीवन में पेश आने वाली कठिनाइयों और उनसे लड़ने की जिजीविषा को उकेरते हैं। वह असुरक्षा और हताशा जैसी अनकही मानवीय संवेदनों को बेहद शानदार ढंग से शब्दों में गढ़ते हैं। इसके अलावा, वह नार्वे की उस भाषा में लिखते हैं जिसमें ग्रामीण परिवेश की खुशबू बसी है।
1959 में नॉर्वे में जन्मे फॉसे महज सात वर्ष की आयु में एक भयानक हादसे के शिकार हुए थे। हालांकि वे बाल-बाल बच गए लेकिन उसका खौफ उनके जेहन में बहुत गहरे तक बस गया। उनके लेखन में इस हादसे का गहरा असर दिखता भी है। फॉसे ने पहला उपन्यास ‘रेड एंड ब्लैक’ लिखा था जो कि आत्महत्या जैसे संवेदनशील मुद्दे पर केंद्रित था। फॉसे नार्वे की दो आधिकारिक भाषाओं में से एक निनोर्स्क में लिखते हैं। नॉर्वे की भाषा परिषद के मुताबिक देश की 54 लाख आबादी में से केवल 10 प्रतिशत लोग ही इसका उपयोग करते हैं, हालांकि दूसरी भाषा बोकमाल में लिखने-पढ़ने वाले बाकी लोग इसे पूरी तरह समझते हैं। बोकमाल नार्वे की सत्ता की भाषा है और शहरी वर्ग इसे ही तरजीह देता है।
ईरान की बहादुर महिला नरगिस को नोबेल शांति पुरस्कार
तेहरान। नार्वे की नोबेल कमेटी ने ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को 2023 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया है। उन्होंने ईरान में महिलाओं के दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी और मानवाधिकारों को बढ़ावा दिया। उन्होंने सभी के लिए स्वतंत्रता का समर्थन किया। नोबेल कमेटी ने कहा कि नरगिस को इसके लिए निजी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें अब तक 13 बार अरेस्ट किया जा चुका है। यही नहीं 5 बार दोषी ठहराया जा चुका है। नरगिस ने 31 साल जेल में बिताए हैं। यही नहीं उन्हें 154 कोड़े भी मारे गए हैं। नरगिस मोहम्मदी अभी जेल में हैं।
सितंबर 2022 में एक युवा कुर्दिश महिला महसा जिना अमीनी की ईरान में पुलिस हिरासत के दौरान मौत हो गई थी। उनकी मौत के बाद पूरे ईरान में जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे। सरकार विरोधी अभियान की कमान नरगिस ने संभाली थी। उन्होंने महिलाओं को स्वतंत्रता देने की मांग की। इस प्रदर्शन में लाखों की तादाद में ईरानी लोगों ने हिस्सा लिया था। ईरानी सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर जमकर अत्यचार किया और 500 से ज्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए। हजारों लोग घायल हो गए । कई लोगों की आंख रबर की बुलेट लगने से खराब हो गई। प्रदर्शन को कुचलने के लिए अब तक 20 हजार से ज्यादा लोगों को अरेस्ट किया जा चुका है।
अमेरिका की क्लॉडिया गोल्डिन को इकोनॉमिक्स में नोबेल
वाशिंगटन। अमेरिका की क्लॉडिया गोल्डिन को इकोनॉमिक्स का नोबेल प्राइज मिला है। उन्हें मार्केट में महिलाओं के कामकाज और उनके योगदान को बेहतर तरह से समझाने के लिए ये सम्मान दिया गया है। नोबेल कमेटी ने लेबर मार्केट में गोल्डिन के रिसर्च को बेहतरीन माना है। उनकी रिसर्च में लेबर मार्केट में महिलाओं के साथ हो रहे पक्षपात और उनकी कमाई को लेकर जानकारी दी गई है। गोल्डिन ने 200 साल के आंकड़ों को स्टडी कर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें उन्होंने ये बताया कि जेंडर का रोजगार और कमाई पर क्या असर पड़ता है। गोल्डिन के रिसर्च के मुताबिक, मार्केट में महिलाओं के योगदान में सीधी बढ़ोतरी नहीं आई। इसकी जगह ये शुरुआती दौर में घटा और अब बढ़ रहा है।
समय के साथ जैसे-जैसे समाज खेती से उद्योग की तरफ बढ़ा, तो मार्केट में शादीशुदा महिलाओं के योगदान में कमी आई। गोल्डिन की स्टडी में ये भी सामने आया कि 20वीं सदी में महिलाओं ने पुरुषों से बेहतर एजुकेशन हासिल की है। दुनियाभर में अर्थव्यवस्थाओं के मॉर्डनाइजेशन के बावजूद महिलाओं की पुरुषों के मुकाबले कमाई काफी कम है।